नई दिल्ली : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने मंगलवार आधी रात को पाकिस्तान के 9 ठिकानों पर मिसाइलों और बमों से स्ट्राइक कर उसे बड़ी चोट दे दी है. ऑपरेशन सिंदूर में आतंकी मसूद अजहर की बहन और बहनोई समेत 14 लोग भी मारे गए. उसके बाद पाकिस्तान ने पलटवार की धमकी तो दी है लेकिन वह अब तक कुछ कर नहीं पाया है. भारत ने पाकिस्तानी सेना को चेतावनी दी है कि अगर उसने जवाबी हमला किया तो उसे बड़ी कीमत चुकानी होगी. भारत की इस सैन्य रणनीति को अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने लंबी रस्सी की रणनीति बताया है. सालेह ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान को एक झटके में मारने के बजाय उसके गले में लंबी रस्सी बांध दी है, जिसका फंदा वह धीरे-धीरे करके कस रहा है.
भारत ने कस दी रस्सी की पहली गांठ : एक्स पर जारी पोस्ट में अमरुल्लाह सालेह ने कहा, पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई साहसिक, अभूतपूर्व और अपने वादे के मुताबिक थी. उसने पाकिस्तान के गले में लंबी रस्सी का फंदा डाल दिया है. उस फंदे में 9 गांठें हैं, जिन्हें वह एक-एक करके कस रहा है. फिलहाल भारत ने ऑपरेशन सिंदूर करके पहला फंदा टाइट कर दिया है.
भारत का एक्शन साहसी, स्पष्ट हमला : सालेह ने आगे लिखा, मुझे यह हैरान करने वाला लगता है कि पाकिस्तान इसे बुजदिलों वाला हमला कहता है. जबकि यह शब्द पाकिस्तान के उन कायरतापूर्ण आतंकी हमलों, आत्मघाती बम विस्फोटों और दुर्भावनापूर्ण एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो मिलिट्री एक्शन लिया, वह कायरता से बिल्कुल अलग था. यह एक साहसी, स्पष्ट हमला था. बड़ी बात ये है कि दिल्ली में जिस महिला सैन्य अधिकारी ने इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी ली, वह कुरैश कबीले से आती हैं. कुरैश सऊदी अरब की वह जनजाति है, जिसका संबंध पैगंबर मोहम्मद से माना जाता है.
काश मेरे पास ऐसे एक्शन की क्षमता होती : अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो सेना पर बरसते हुए अमरुल्लाह सालेह ने लिखा, काश, जब क्वेटा शूरा (अफगान तालिबान) सक्रिय था, तब मेरे पास ऐसी क्षमता होती. यह भी उतना ही हैरान करने वाला है कि नाटो और अमेरिका ने क्वेटा शूरा, हक्कानी नेटवर्क या वहां के अन्य चर्चित आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ कभी भी ऐसा ही “सिंदूर-शैली” ऑपरेशन क्यों नहीं चलाया. शायद दोहा समझौते पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने के कारण ही वे पीछे रह गए. लेकिन अब भारत यह कार्रवाई करके एक नया प्रतिमान स्थापित कर रहा है.
कौन हैं अमरुल्लाह सालेह? : अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के ताजिक मूल के नेता हैं. वे अशरफ गनई के शासनकाल में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति रहे हैं. उन्हें तालिबान और पाकिस्तान का घोर विरोधी माना जाता है. पाकिस्तान की शह पर जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया तो वे जान बचाने के लिए देश छोड़कर पड़ोसी देश ताजिकिस्तान चले गए, जहां उनके मूल के तमाम लोग रहते हैं. वे अपने देश अफगानिस्तान की बर्बादी का जिम्मेदार पाकिस्तान को मानते हैं और इसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सजा दिए जाने की मांग करते रहे हैं.