कूटनीतिक जीत : आतंकवाद पर खींची स्थायी रेखा, अपने उद्देश्य में भारत सफल

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नई दिल्ली : पहलगाम पर बर्बर और अमानवीय आतंकी हमला मामले में पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर भारत ने अपना मकसद पूरा कर लिया। आतंकवाद के सवाल पर भारत ने पड़ोसी पाकिस्तान के लिए एक स्थायी लक्ष्मण रेखा खींच दी। सीजफायर को स्वीकार करने से पहले भारत ने घोषित कर दिया कि अब भविष्य में देश के अंदर होने वाली एक भी आतंकी घटना को वह अपने खिलाफ युद्ध मानेगा।

इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि भविष्य में ऐसी आतंकी कार्रवाई के खिलाफ जवाबी सैन्य कार्रवाई के लिए भारत ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया है। इसका सीधा अर्थ है कि पाकिस्तान भविष्य में ऐसी आतंकी कार्रवाई के लिए भारत की सीधी कार्रवाई के लिए तैयार रहे।

करीब चार दिन की तनातनी के बाद कूटनीतिक विशेषज्ञ युद्ध विराम पर भारत की सहमति को लेकर अपने निष्कर्ष के लिए स्वतंत्र हैं। दोनों पक्षों के समर्थन और विरोध में कई तर्क दिए जा रहे हैं। हालांकि सही निहितार्थ में देखें, तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारत अपने उद्देश्य में सफल रहा है। कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान की दुनिया भर में फजीहत हुई है।

यह भी साफ हुआ है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद को पोषित और संरक्षण देने की नीति पर कायम रहा तो आने वाले समय में उसकी मुश्किलें बढ़ेंगी। यह मुश्किलें ऐसे समय में बढ़ेंगी जब पाकिस्तान आर्थिक और आंतरिक मोर्चे पर बुरी तरह से संघर्ष कर रहा है। अब सवाल है कि इस संघर्ष विराम को कैसे देखा जाना चाहिए? इस संघर्ष विराम के राजनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ क्या हैं? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि सैन्य और कूटनीतिक संघर्ष में जीत किसके हाथ लगी है? मेरा मानना है कि संघर्ष विराम को भारत के कूटनीतिक रणनीति के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह बेहद महत्वपूर्ण है। 

भारत ने पहलगाम आतंकी हमला मामले में पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। निशाना बनाने से पहले भारत पूर्व की तरह दुनिया के आगे कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग—थलग करने की मुहिम से दूर रह कर सीधी कार्रवाई की। यह सीधी कार्रवाई इस बात का संकेत है कि अब अपने खिलाफ आतंकी घटनाओं के बाद भारत दुनिया के आगे रोने और मध्यस्थता की गुजारिश करने के बदले सीधी कार्रवाई करेगा।

भारत की कूटनीतिक रणनीतिक दूसरा पहलु अत्यंत महत्वपूर्ण है। सैन्य कार्रवाई के जरिए भारत पाकिस्तान के उकसावे में नहीं आया। उसने दुनिया को सफल संदेश दिया कि उसकी लड़ाई पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बल्कि आतंकी संगठनों के खिलाफ है। उन आतंकी संगठनों के खिलाफ जिसे पाकिस्तान में वित्तीय और राजनीतिक संरक्षण हासिल है।

पाकिस्तान ने सैन्य कार्रवाई को अपने नागरिकों के खिलाफ हमला करार दिया, हालांकि जैसे-जैसे इस कार्रवाई में पत्रकार डेनियल पर्ल के हत्यारे समेत दूसरे आतंकियों के मारे जाने की सूचना सामने आई, उससे पाकिस्तान वैश्विक मंच पर बुरी तरह से बेनकाब हो गया। भारत अपने सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई का माकूल जवाब दे सकता था। कई मोर्चे पर कार्रवाई भी की, मगर यह संदेश देने में सफल रहा कि वह पाकिस्तान ही है, जो आतंक के खिलाफ लड़ाई को युद्ध में बदलने पर आमदा है।

भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद वैश्विक स्तर पर मचे हलचल पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका यह लगा कि एक भी खाड़ी देश उसके समर्थन में नहीं आया। 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद सउदी अरब से लेकर ईरान तक तमाम इस्लामिक देश उसके समर्थन में खड़े हो गए थे। सउदी ने तो परीक्षण तक पाकिस्तान को प्रतिदिन मुफ्त में 50 हजार बैरल तेल देने की घोषणा की थी। अब भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद तुर्किए तो छोड़ कर एक भी इस्लामिक देश उसके समर्थन में खड़ा नहीं हुआ। ईरान, सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात ने तटस्थ देश की भूमिका निभाई। यहां तक की चीन ने भी सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया। इसके उलट रूस समेत अन्य पश्चिमी देश भारत के पक्ष में परोक्ष और प्रत्यक्ष खड़ा नजर आए।

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