बांग्लादेश : मुक्ति संग्राम में कत्लेआम करने वाला जमात-ए-इस्लामी नेता बरी, 1256 हत्या और 13 रेप का आरोप 

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नई दिल्ली/ढाका : पिछले साल अगस्त में  पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाने वाला संगठन जमात-ए-इस्लामी पर मौजूदा सरकार काफी मेहरबान है. मुहम्मद यूनुस की अगुआई वाली अंतरिम सरकार ने सत्ता संभालते ही जमात-ए-इस्लामी और उसकी छात्र शाखा ‘इस्लामी छात्र शिबिर’ पर लगी रोक खत्म कर दी थी.

अब इस कट्टरपंथी समूह के नेता अजहरुल इस्लाम को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (आईसीटी) द्वारा दी गई मौत की सजा को रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया. इससे पहले उन्हें 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के लिए मुजरिम करार दिया गया था.

अजहरुल इस्लाम पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के खिलाफ जुर्म करने के इल्जाम लगाए गए थे. लोकल मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, चार्जशीट में कहा गया है कि कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी का नेता मुक्ति संग्राम के दौरान रंगपुर इलाके में 1,256 लोगों की हत्या, 17 लोगों के किडनैप और 13 महिलाओं से रेप के लिए जिम्मेदार था.

स्थानीय मीडिया के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने जेल अफसरों से कहा है कि अगर अजहरुल के खिलाफ कोई और मामला नहीं चल रहा है, तो उसे फौरन रिहा कर दिया जाए. अतीत में कई इल्जामों में मुजरिम पाए जाने के बावजूद चीफ जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने अजहरुल की अपील पर सुनवाई के बाद बरी करने का फैसला सुनाया.

13 साल में जेल बंद है इस्लाम : अगस्त 2012 में इस्लाम को इंसानियत के खिलाफ जुर्म के इल्जाम में ढाका के मोघबाजार में मौजूद घर से अरेस्ट किया गया था और तब से वह जेल में है. दिसंबर 2014 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने अजहरुल को नौ में से पांच आरोपों में मुजरिम मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी. अजहरुल को रंगपुर इलाके में 1971 के दौरान हुई सामूहिक हत्या, किडनैप और यातना का मुजरिम पाया गया था, जहां एक हजार से ज्यादा लोगों की जान ली गई थी.

कोर्ट ने 2019 में मौत की सजा को बरकरार रखा था : रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्लामी पार्टी के नेता ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान लोगों पर जुल्म किए, सैकड़ों घरों को जलाया और कई अन्य हिंसक काम किए. फैसले को चुनौती देते हुए अजहरुल ने जनवरी 2015 में अपील दायर की थी. हालांकि, तब के चीफ जस्टिस सैयद महमूद की अध्यक्षता वाली बेंच ने अक्टूबर 2019 में मौत की सजा को बरकरार रखा. 15 मार्च 2020 को पूरा फैसला सामने आने के बाद उन्होंने रिव्यू पिटीशन दायर की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.

अदालत ने सुनाया आखिरी फैसला : अपीलीय डिवीजन ने समीक्षा याचिका की सुनवाई के बाद 26 फरवरी को अपील की इजाजत दी और मामले का सारांश पेश करने का निर्देश दिया, जिसे बाद में जमा किया गया. बांग्लादेश के एक प्रमुख दैनिक अखबार ‘प्रथोम अलो’ के मुताबिक, अपील की सुनवाई के बाद अदालत ने मंगलवार को अपना आखिरी फैसला सुनाते हुए अजहरुल को बरी कर दिया. पिछले साल मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने सत्ता संभालते ही जमात-ए-इस्लामी और उसकी छात्र शाखा ‘इस्लामी छात्र शिबिर’ पर लगी रोक खत्म कर दी थी. ये कट्टरपंथी समूह पूर्व पीएम शेख हसीना की चुनी हुई सरकार को हटाने के लिए छात्र नेताओं और यूनुस के साथ-साथ काम करते थे.

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