मोरक्को : किंग मोहम्मद VI ने बकरीद में जानवरों की कुर्बानी पर लगाई रोक, मुसलमानों को बड़ा संदेश

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नई दिल्ली/मोरक्को : बकरीद पर दुनिया भर के मुसलमानों को बड़ा संदेश देते हुए एक इस्लामिक देश ने किसी भी जानवर की कुर्बानी नहीं करने का फैसला गिया है। यह देश कोई और नहीं, बल्कि मुस्लिम आबादी से लबरेज मोरक्को है। मोरक्को प्रशासन ने ईद-अल-अज़हा से पहले मोरक्को में पशु बाजारों को बंद कर दिया है। साथ ही बकरे समेत किसी भी अन्य पशु की कुर्बानी नहीं देने का आदेश सुनाया है। किंग मोहम्मद VI द्वारा पूर्व में दिए गए इस आदेश का अधिकारियों ने पालन करवाना भी शुरू कर दिया है।  मोरक्को वर्ल्ड न्यूज के हवाले यह खबर सामने आ रही है।

क्यों दिया मोरक्को सरकार ने ऐसा निर्देश : ईद-अल-अज़हा से पहले पारंपरिक पशु बलि को रद्द करने के शाही निर्देश दिया गया है। इसके बाद मोरक्को प्रशासन ने देशभर में पशु बाजारों को बंद करने का अभियान शुरू कर दिया है। यह कदम घटती पशुधन संख्या की रक्षा करने और संकटग्रस्त समुदायों पर दबाव कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, किंग मोहम्मद षष्ठम (Mohammed VI) द्वारा जारी निर्णय के तहत इस वर्ष पारंपरिक पशु बलि को रद्द कर दिया गया है। यह निर्णय देश में चल रहे सूखे और आर्थिक कठिनाइयों के कारण लिया गया है, जिनकी वजह से पशुधन की संख्या में तेज गिरावट आई है।

अधिकारियों को सख्ती बरतने को कहा गया : पशुधनों की बलि रोकने के लिए प्रशासन ने यह निर्देश देशभर के गवर्नरों और स्थानीय अधिकारियों को भेजा है। उन्हें इस प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने को कहा गया है। ईद से पहले आमतौर पर सक्रिय रहने वाले सार्वजनिक और मौसमी पशु बाजारों को बंद करने पर विशेष जोर दिया गया है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि कई प्रांतों ने सभी साप्ताहिक भेड़ बाजारों को बंद करने, बलि से संबंधित सभी जनसभाओं पर प्रतिबंध लगाने, नगरपालिका बूचड़खानों को अस्थायी रूप से बंद करने और कुछ क्षेत्रों में बलि उपकरणों की बिक्री तक पर रोक लगाने जैसे सख्त कदम उठाए हैं।

पशुधन रक्षा के लिए किंग मोहम्मद मोहम्मद का अनुरकरणीय आदेश : देश भर में पशुधनों की रक्षा के मकसद से दिया गया किंग मोहम्मद VI का यह निर्देश दुनिया भर के मुसलमानों के लिए अनुकरणीय और सीख देने वाला है। किंग ने इस वर्ष की शुरुआत में मोरक्को वासियों से पारंपरिक बलि से परहेज करने की अपील की थी, ताकि मांस की बढ़ती कीमतों से जूझ रहे परिवारों पर वित्तीय बोझ कम हो और घटती पशुधन संख्या की रक्षा की जा सके।

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