नई दिल्ली : 25 जून 1975 को लगे आपातकाल के 50 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन उस दौर में हुए ‘अध्यादेश राज’ की चर्चा आज भी संवैधानिक बातचीत का हिस्सा है। इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान कुल 48 अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी किए। इनमें से पांच बार कुख्यात MISA (आंतरिक सुरक्षा अधिनियम) में संशोधन किया गया, जिसने सरकार को किसी को भी बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया था।
आपातकाल के दौरान संसद के सत्र बेहद छोटे होते थे। विपक्षी सांसदों की गिरफ्तारी के चलते संसद में बहस या विरोध की गुंजाइश नहीं थी। उस स्थिति में अध्यादेशों को कानून का रूप देने के लिए संसद की मुहर लगवाना आसान हो गया था। उस समय संसद ने संविधान में भी कई बड़े बदलाव किए, जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर देना और प्रीएम्बल में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़ना।
MISA और अन्य सख्त कानूनों का अध्यादेश से विस्तार : आपातकाल लागू होने के ठीक चार दिन बाद 29 जून 1975 को पहला MISA संशोधन अध्यादेश जारी हुआ। इसके बाद चार और बार MISA में बदलाव किए गए। इसी तरह 30 जून को ‘डिफेंस ऑफ इंडिया ऑर्डिनेंस’ भी आया, जिसने सरकार को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर कई अधिकार दे दिए। फरवरी 1977 में चुनाव से ठीक पहले एक और अध्यादेश लाया गया, जो प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को चुनौती देने के लिए अदालत की बजाय एक विशेष प्राधिकरण बनाए जाने से जुड़ा था।
न्यायपालिका की भूमिका पर पड़ा प्रभाव : पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य के अनुसार, 42वां संविधान संशोधन इस काल का सबसे विवादास्पद कानून था जिसने संविधान के ढांचे को ही प्रभावित किया। हालांकि 1978 में जनता पार्टी सरकार द्वारा लाए गए 44वें संशोधन ने इनमें से कई बदलावों को वापस लिया। उदाहरण के लिए, आपातकाल घोषित करने के लिए अब राष्ट्रपति को पूरी कैबिनेट की मंजूरी अनिवार्य कर दी गई, न कि केवल प्रधानमंत्री की सिफारिश पर। दरअसल, आपातकाल के समय सिर्फ प्रधानमंत्री की सिफारिश पर मंजूरी दी जाने लगी थी.
अनुच्छेद 21 मूल अधिकारों की आत्मा है : आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 359 में संशोधन कर नागरिक अधिकारों को स्थगित किया गया। हालांकि 44वें संशोधन के तहत बाद में तय किया गया कि अनुच्छेद 20 यानी न्यायिक संरक्षण और अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आपातकाल में भी निलंबित नहीं किया जा सकता। इसीलिए अनुच्छेद 21 को मूल अधिकारों की आत्मा कहा जाता है.
लोकसभा का कार्यकाल भी दो बार बढ़ाया गया : आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल दो बार एक-एक साल के लिए बढ़ाया गया। पहली बार फरवरी 1976 और दूसरी बार नवंबर 1976 में बिल पास कर इसे मार्च 1978 तक बढ़ा दिया गया। हालांकि इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी 1977 को चुनावों की घोषणा कर दी और 24 मार्च को मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि MISA को 1978 में रद्द कर दिया गया और ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ आपातकाल खत्म होते ही निष्प्रभावी हो गया, लेकिन संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्द और मूल कर्तव्यों से जुड़े प्रावधान आज भी लागू हैं। संविधान का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को दोनों सदनों के छुट्टी के दौरान अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है, पर कहा जाता है कि आपातकाल ने इस शक्ति के दुरुपयोग की मिसाल पेश की।