नई दिल्ली : तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि वो खुला यानी तलाक के लिए पति की रजामंदी के बगैर फैसला ले सकती हैं. उन्हें इसके लिए शौहर या किसी धार्मिक संगठन की मंजूरी लेना जरूरी नहीं है. अदालत ने कहा कि ऐसी महिलाएं अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हैं और कोर्ट का फैसला दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होगा.अदालत ने फैसले में कुरान का उल्लेख करते हुए लिखा कि एकतरफा तरीके से खुला लेने के अधिकार पर कोई बाध्यता नहीं है.
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बीआर मधुसूदन की खंडपीठ ने कहा कि इस्लामिक कानून के तहत मुस्लिम महिलाएं खुला के तहत अपनी शादी तोड़ सकती हैं. इसमें शौहर की सहमति, मुफ्ती-मौलवी का खुलानामा या दार उल कजा की अनुमति लेना जरूरी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि ये धार्मिक संगठन सिर्फ सलाहाकारी भूमिका में हैं और ये महिलाओं के स्वतंत्र अधिकार के दायरे के ऊपर नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा, इसमें अदालत की सिर्फ इतनी है कि वो विवाह बंधन तोड़ने पर न्यायिक मुहर लगाए, जो फिर दोनों पक्षों पर समान रूप से लागू होगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि खुला के आवेदन की जांच में फैमिली कोर्ट की भूमिका सीमित है. वो सुलह के लिए प्रयास करे और इस बात की पुष्टि करे कि पत्नी मेहर लौटाने को तैयार है या नहीं, अगर ये इस मामले से जुड़ा हो.ये बेहद संक्षिप्त होना चाहिए, इसे कोर्ट के ट्रायल जैसा नहीं चलना चाहिए.
अदालत का ये फैसला एक मुस्लिम पुरुष की पत्नी के खुला के खिलाफ याचिका पर आया है. महिला ने सदा ए हक शरई काउंसिल से वैवाहिक विवाद मामले में मदद मांगी थी. पति के इनकार के बाद काउंसिल ने महिला के खुला की याचिका पर सहमति दी थी. फैमिली कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगाई थी, जिसके खिलाफ पति ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.