नई दिल्ली : कांग्रेस नेतृत्व के साथ शह-मात का खेल खेल रहे केरल से सांसद शशि थरूर ने इस बार पार्टी की दुखती रग छेड़ दी है. उन्होंने कांग्रेस को 1975 की इमरजेंसी के समय दमनकारी नीतियों की याद दिलाई है. शशि थरूर ने एक लेख में लिखा- आज का भारत 1975 का देश नहीं है. थरूर ने लिखा, कैसे पूरी दुनिया इमरजेंसी के वक्त की भयानक हकीकत, हिरासत में यातनाओं और न्यायेतर हत्याओं से अनजान थी. थरूर ने लिखा, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सत्तावादी रवैये ने सार्वजनिक जीवन को भय और दमन के हालात में धकेल दिया. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज का भारत ‘1975 का भारत नहीं है.’
तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर का यह लेख ऐसे वक्त आया है, जब उनके और पार्टी के बीच शीत युद्ध जैसा माहौल है. शशि थरूर खुलकर मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं का समर्थन करते दिखते हैं. उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर को खुलकर सराहा. साथ ही पाकिस्तान को बेनकाब करने वाले कूटनीतिक मिशन की अगुवाई भी की. मोदी सरकार की दिल खोलकर तारीफ से जले भुने कांग्रेस प्रवक्ताओं को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया.
इंदिरा गांधी पर टारगेट : थरूर ने लिखा, इंदिरा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि कठोर उपाय आवश्यक थे, केवल आपातकाल ही आंतरिक अव्यवस्था और बाहरी खतरों से निपट सकती है और अराजक हो चुके देश में अनुशासन और व्यवस्था ला सकती है. आपातकाल जून 1975 से लेकर मार्च 1977 तक चला. इस दौरान तमाम नागरिक अधिकारों को निलंबित किया गया और विपक्षी नेताओं का जमकर दमन किया गया.
आपातकाल की 50वीं बरसी : आपातकाल की अभी पिछले महीने ही 50वीं बरसी मनाई गई थी.वरिष्ठ कांग्रेस नेता थरूर ने बताया कि कैसे लोकतंत्र के मजबूत स्तंभों को इमरजेंसी के दौरान खामोश किया गया था, जिसने भी सत्ता को चुनौती दी, उसे खतरनाक अंजाम भुगतना पड़ा. थरूर ने कहा कि यहां तक कि भारी दबाव में न्यायपालिका को भी झुकना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण और आजादी के नागरिक अधिकार के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई. पत्रकारों-मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया. संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाते हुए मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया.
संजय गांधी पर हमला : इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी पर हमला करते हुए थरूर ने लिखा, इमरजेंसी के दौरान उनके कारनामों को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर बेइंतहा जुल्म किए गए. इंदिरा गांधी के बेटे ने जबरन नसबंदी का अभियान चलाया. गरीबों-मजलूमों को इसके जरिए निशाना बनाया गया.
आलोचनाओं को कुचला गया : थरूर ने कहा,”बेलगाम शक्तियां” अत्याचारी हो गई थीं, बाद में इन कारगुजारियों को ‘दुर्भाग्यपूर्ण ज्यादती’ बताकर कमतर आंका गया. आलोचनाओं को खामोश करने के लिए इकट्ठा होने, लिखने और स्वतंत्र तौर पर बोलने के मौलिक अधिकार छीन लिए गए. संवैधानिक मानकों का मखौल उड़ाया गया, जिसने भारतीय राजनीति में कभी न मिटने वाले घाव दिए.