महादेव चोटी : भगवान शिव की तीसरी आंख का धधकता प्रतीक, किया था ‘वैराग्य’ का साक्षात् प्रदर्शन

Mount-mahadev

नई दिल्ली : सावन का पावन महीना चल रहा है. इस महीने को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय माना जाता है. आज हम भोलेनाथ से जुड़ी ऐसी ही एक पवित्र भूमि के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अत्यंत पावन और भव्य-दिव्य शिखर के रूप में मौजूद है. वहां भगवान शिव ने अपनी अमर कथा सुनाई और सांसारिक मोह-माया छोड़कर तपस्या का मार्ग अपनाया. इस शिखर पर चारों ओर सनातन धर्म की गूंज सुनाई देती है. यहां की मिट्टी और पत्थरों में भक्तों की आस्था की चमक झलकती है.

कहां पर है ‘महादेव चोटी’? : सदियों से, कश्मीरी पंडित इस पवित्र स्थल की ओर अपनी श्रद्धा और भक्ति लिए चलते आए हैं. विशेषकर सावन पूर्णिमा के अवसर पर हजारों श्रद्धालु कठिन रास्ते को पार कर एक अलौकिक ऊर्जा को पाने के लिए निकल पड़ते हैं. ये पर्वत शिखर कोई और नहीं बल्कि श्रीनगर के पास स्थित महादेव चोटी है.

हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं भोलेनाथ : सनातन धर्म में भगवान शिव का स्थान सर्वोच्च है. सनातन धर्म में भगवान शिव को सर्वव्यापी और सर्वत्र साक्षात देवता के रूप में पूजा जाता है. शिव आदि हैं, वे अंत हैं  और उनके बीच जो कुछ भी है, वो उनका ही विस्तार है. उनका धाम कैलाश पर्वत न केवल भौगोलिक रूप से उच्चतम बिंदुओं में से एक है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसे विश्व की धुरी कहा जाता है.

ऐसा विश्वास है कि कैलाश की चोटियों पर भगवान शिव ध्यानमग्न रहते हैं, वहीं से वे संपूर्ण सृष्टि की गति और संतुलन को संचालित करते हैं. परंतु कैलाश ही शिवजी का एकमात्र निवास नहीं है. सनातन परंपरा में एक और स्थल शिवजी के परम धाम के रूप में विख्यात है. सनातन धर्म की गहराइयों में एक शक्ति केंद्र ऐसा भी है, जो केवल एक पर्वत न होकर एक जीवंत आस्था, परंपरा और संरक्षण का प्रतीक है..जिसे महादेव शिखर कहते हैं.

महादेव शिखर-जहां पड़े महाकाल के चरण : जम्मू और कश्मीर की जबरवान पर्वतमाला में स्थित ये पवित्र स्थल मात्र एक पर्वतीय शिखर नहीं है बल्कि भगवान शिव की उपस्थिति का प्रत्यक्ष अनुभव है. ये चोटी न केवल हिमालय की ऊंचाइयों में स्थित है, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा में भी समाहित है. महादेव चोटी कोई साधारण पर्वत शिखर नहीं है. ये महादेव की तीसरी आंख का धधकता प्रतीक है. ये तो वो शिखर है जहां से भगवान शिव स्वयं कश्मीर पर दृष्टि रखते हैं. ये वो भूमि है, जहां धर्म अपनी पूर्ण गरिमा में स्थापित होता है..

महादेव चोटी-शिव का पवित्र पड़ाव : कैलाश पर्वत अवश्य भगवान शिव का दिव्य सिंहासन है, जहां से वो ब्रह्मांड की ऊर्जा नियंत्रित करते हैं. जब बात होती है अमरता की, रहस्य की, सनातन शक्ति के विराट तत्वों की तो शिवजी अमरनाथ की ओर प्रस्थान करते हैं. अमरनाथ यात्रा का एक सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है महादेव चोटी. यही वो भूमि है जहां शिव ने शिवत्व की पराकाष्ठा को प्रकट किया.

मान्यता है कि भगवान शिव जब माता पार्वती को अमर कथा सुनाने अमरनाथ गुफा की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तो इसी मार्ग पर भगवान शिव ने अपने सांसारिक प्रतीकों नंदी, सर्प, चंद्र, गंगाधार और डमरू का त्याग कर दिया था. इसीलिए महादेव चोटी उस त्याग की प्रतीक भूमि है, जहां महादेव ने ‘वैराग्य’ का साक्षात् प्रदर्शन किया.

कश्मीरी पंडितों की ऐतिहासिक गवाही : कश्मीर का भगवान शिव से गहरा संबंध है. कश्मीरी पंडित विशेष रूप से महाशिवरात्रि को हेरथ के रूप में मनाते हैं. जिसमें भगवान शिव को अपने दामाद के रूप में जबकि मां पार्वती को अपनी बेटी मानते हुए पूजते हैं. हेरथ उत्सव के लिए कश्मीरी पंडित परिवार 15 दिन पहले से विशेष पूजा और अनुष्ठान शुरू कर देते हैं. हेरथ त्रुवह यानी त्रयोदशी के दिन वटुक स्थापना की जाती है, जिसमें भगवान शिव और उनके गणों के प्रतीक के रूप में बर्तन स्थापित किए जाते हैं. जबकि महाशिवरात्रि यानी हेरथ के दिन भगवान शिव को दामाद के रूप में पूजने के कारण उनके स्वागत के लिए विशेष पकवान बनाए जाते हैं.

लोककथाओं में वर्णित है कि शिवजी ने इसी महादेव चोटी से पूरी कश्मीर घाटी पर दृष्टि डाली और उसे अपनी तीसरी आँख की सुरक्षा में रखा. इसीलिए कश्मीरी पंडित मानते हैं कि महादेव चोटी केवल पर्वत नहीं, बल्कि शिव की दृष्टि और कश्मीर की रक्षा का प्रतीक है..

राजतरंगिणी में भी है चोटी का वर्णन : कल्हण द्वारा रचित ऐतिहासिक ग्रंथ राजतरंगिणी में भी इस महादेव चोटी का वर्णन है. कश्मीरी पंडितों के लिए महादेव चोटी तीर्थयात्रा का एक प्रसिद्ध पड़ाव है. इससे ये बात स्पष्ट होती है कि महादेव शिखर न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी कश्मीरी जीवन का अभिन्न अंग रहा है.

प्राचीन काल में सावन पूर्णिमा के अवसर पर कश्मीरी पंडित महादेव शिखर की कठिन यात्रा करते थे. उस समय ये तीर्थ केवल आत्मिक शुद्धि का साधन नहीं था, बल्कि भगवान शिव के प्रति पूर्ण समर्पण की परीक्षा भी थी. ये यात्रा वर्षभर जमी रहने वाली एक पवित्र हिम-चादर से होकर गुज़रती थी, जिसका स्पर्श स्वयं को शिव के चरणों में समर्पित करने के समान माना जाता था. सनातनी अनुवाइयों के बीच मान्यता थी कि महादेव पर्वत पर चढ़ाई करने से से मोक्ष का मार्ग खुल जाता है.

कितने हजार फुट की ऊंचाई पर है महादेव चोटी? : देश की रक्षा के लिए जब आतंकवाद से लड़ाई का बिगुल बजा, तब सामने आया एक ऐसा अभियान, जिसने अपने नाम से ही नफरत और आतंकवाद को सीधी चुनौती दे दी..जहां आतंकवादियों को नष्ट किया गया, वो इलाका सिर्फ कोई रणभूमि नहीं, बल्कि पवित्रता की पहाड़ी..महादेव शिखर या महादेव गली है. जबरवान पर्वतमाला में स्थित महादेव चोटी की ऊंचाई करीब तेरह हजार फीट है जो श्रीनगर की सबसे ऊंची चोटी भी है. इस पवित्र स्थान की महत्ता का प्रतीक रहा ऑपरेशन महादेव.. जिसने न केवल आतंकवादियों का सफाया किया, बल्कि एक मजबूत संदेश दिया कि हमारे देवी-देवताओं की भूमि पर कोई भी आतंकवादी टिक नहीं सकता.

शिव की तीसरी आंख कश्मीर का ‘दिव्य प्रहरी’ : महादेव शिखर कोई मौन पर्वत नहीं है. यह चैतन्य है, जीवंत है, और सर्वदृष्टा है. यह शिखर भगवान शिव की तीसरी आंख की तरह है, जो कश्मीर की आत्मा पर टिकी है. कश्मीरी पंडित सदियों से मानते आए हैं कि इस शिखर की छाया में कोई पापी, कोई अधर्मी जीवित नहीं बच सकता. यह कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि यह साक्षात अनुभव है.

इस विशेष मान्यता की हालिया पुष्टि ऑपरेशन महादेव के दौरान देखने को मिली. जब श्रीनगर के लीदवास में छिपे आतंकवादियों को भारतीय सुरक्षा बलों ने मार गिराया गया. भगवान शिव के पवित्र शिखर के पास पहलगाम हमले के दोषी तीनों पाकिस्तानी आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने ढेर कर दिया. तीनों आतंकी उसी धरती पर गिरे जहां शिव की चेतना हर कण में विद्यमान है.

संहारक के प्रतीक हैं भगवान शिव : भगवान शिव को संहारक के रूप में जाना जाता है. जो अधर्म और अत्याचार के अंत का प्रतीक हैं. सनातन धर्म में विश्वास और मान्यता है कि भगवान शिव किसी अन्याय को सहन नहीं करते और दुष्टों को तुरंत दंडित करते हैं. महादेव शिखर की उपस्थिति कश्मीर में उसी दिव्य दृष्टि की स्मृति दिलाती है.

आतंकियों के खिलाफ इस अभियान का नाम ऑपरेशन महादेव इसीलिए रखा गया..क्योंकि ये कश्मीर की आत्मा और भगवान शिव की शक्ति से प्रेरित था. कश्मीरियों के लिए ये घटना महादेव की दैवी न्याय-प्रणाली की आधुनिक पुष्टि बन गई है. हालांकि खबर है कि महादेव चोटी पर अब भी करीब 15 खूंखार आतंकी छिपे हुए हैं.

कश्मीर की आत्मा में शिव! : महादेव चोटी जबरवान पर्वतमाला का हिस्सा है, जो पूर्व में तरसर, मार्सर, और दक्षिण में कोलाहोई जैसी पवित्र झीलों और पर्वतों से जुड़ी है. श्रीनगर के हर कोने से दिखाई देने वाली यह चोटी एक दैवीय संरक्षक की तरह नगरवासियों की ओर देखती प्रतीत होती है. कश्मीर को ऋषि भूमि और शिव भूमि कहा गया है.

यहां की आध्यात्मिक चेतना में शिव रच-बस चुके हैं. शिव के बिना कश्मीर की कल्पना अधूरी है. महादेव शिखर उसी आत्मा का प्रतिबिंब है जहां पवित्रता, सुरक्षा, और धर्म की शक्ति एक साथ प्रतिष्ठित है.

धार्मिक से साहसिक स्थल की ओर परिवर्तन : आज जब कश्मीर और विशेष रूप से श्रीनगर, एक नए युग की ओर बढ़ रहा है, तो ये आवश्यक है कि महादेव शिखर जैसे आध्यात्मिक केंद्रों को फिर से उसी श्रद्धा, मान्यता और महिमा के साथ प्रतिष्ठित किया जाए. ये सिर्फ कश्मीरी पंडितों की नहीं, बल्कि पूरे भारत की आध्यात्मिक विरासत का विषय है. भगवान शिव का ये पवित्र धाम, जो कभी वैराग्य, तप और न्याय का प्रतीक था, आज भी उस दिव्यता से युक्त है.

सैकड़ों साल पहले महादेव शिखर एक ग्लेशियर था..और ग्लेशियर होने से यहां सालों भर जमी रहती थी. कहा जाता है कि कश्मीरी पंडित पारंपरिक रूप से सावन पूर्णिमा के दौरान महादेव  शिखर की तीर्थयात्रा करते थे. और तीर्थयात्रा के दौरान ग्लेशियर से प्राप्त बर्फ को कश्मीरी पंडित तीर्थयात्री पवित्र प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे. आज  महादेव शिखर को ट्रैकिंग और पर्वतीय पर्यटन के एक आकर्षक स्थल के रूप में देखा जाने लगा है. परंतु इसके धार्मिक महत्व की गहराई अक्सर अनदेखी रह जाती है..

केवल पर्यटन स्थल न बनकर रह जाए चोटी : पर्यटकों और स्थानीय युवाओं के लिए यह पर्वत महज साहसिक चढ़ाई का स्थल बनकर रह गया है, जबकि इसके नीचे शाश्वत शिव का वास है. हालांकि कश्मीरी पंडित आज भी इस पर्वत को तीर्थ के रूप में देखते हैं. जिससे उन्हें महादेव की साक्षात उपस्थिति का अनुभव होता है. महादेव चोटी आज भी श्रीनगर को अपने दिव्य आभामंडल में ढके हुए है. महादेव चोटी के ऊपर जब बादल इस पर छाते हैं..तो लगता है मानो महादेव स्वयं ध्यान में लीन हों..और जब बिजली चमकती है, तो लगता है रुद्र का गरजन हो रहा है.

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