नई दिल्ली : भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ युद्ध लगातार बढ़ता जा रहा है, अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के पूर्व महानिदेशक डॉ. एन.के. गांगुली ने जो बात कही है, उसे जानकर आपका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा.
अमेरिकी टैरिफ से भारत के दवा उद्योग पर क्या पड़ेगा असर? : डॉ. गांगुली ने कहा कि प्रस्तावित अमेरिकी टैरिफ से भारत को कोई नुकसान नहीं होगा. असली असर टैरिफ लगाने वाले देश (अमेरिका) पर पड़ेगा. वे इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि भारत सबसे सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराता है और दुनिया भर में इसका सबसे बड़ा उत्पादक भी है. भारत से सप्लाई होने वाली सस्ती और गुणवत्तापरक दवाओं से दुनिया में करोड़ों लोगों को इलाज सुलभ हो पाता है.
अमेरिका को झेलना पड़ेगा ज्यादा नुकसान : ICMR के पूर्व चीफ ने कहा कि यदि इन दवाओं पर टैरिफ लगाया जाता है तो वहां पर ये दवाएं महंगी हो जाएंगी. ऐसे में भारत पर ज़्यादा टैरिफ लगाने वाला देश अपने ही नागरिकों को नुकसान पहुंचाएगा. उन्हें इन दवाओं को खरीदने के लिए ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी. इससे वहां के काफी लोग सस्ते-सुलभ इलाज से वंचित रह जाएंगे, जिससे वहां का स्वास्थ्य ढांचा चरमरा कर रह जाएगा. वहीं भारत की बात करें तो इसका कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा.”
दुनिया में 80 फीसदी जेनरिक दवाएं कहां बनती हैं? : डॉ. गांगुली बताते हैं, भारत का दवा उद्योग दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है. इसके लिए भारत दवा निर्माण के लिए एक मूल्य निर्धारण नीति का पालन करता है, जिससे दवाओं की कीमतें कम रहती हैं. भारत में डॉक्टरों को भी जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. कई सरकारी योजनाएं दवाओं तक सस्ती पहुंच सुनिश्चित करने में मदद करती हैं. दवाएं ऑनलाइन भी मंगवाई जा सकती हैं और प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत भी. दोनों ही स्थितियों में ये कम कीमतों पर उपलब्ध रहती हैं.
कैंसर-एचआईवी की सस्ती दवाएं कहां बनती हैं? : वे आगे कहते हैं कि कैंसर और एचआईवी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली जीवन रक्षक दवाएं भी भारत में बनाई जाती हैं. इन दवाओं पर शुल्क कम कर दिया गया है. इससे जरूरतमंद देशों के लिए इन्हें किफायती दामों पर प्राप्त करना आसान हो गया है. वहीं यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों में दवाओं की कीमतें काफी ज़्यादा हैं. ऐसे में अगर अमेरिका, यूरोप या अन्य किसी भी देश में भारतीय दवाओं के आयात पर टैरिफ लगाया जाता है तो इससे वहां के लोगों को फायदे के बजाय नुकसान ही ज्यादा होगा.
अपनी जनता को खतरे में डाल देगी सरकार की नीति : उन्होंने यह भी बताया कि भारत के अलावा बहुत कम देश ऐसी दवाइयां बनाते हैं. कई देश जेनेरिक दवाइयाँ बनाते ही नहीं, क्योंकि उन्हें मानव संसाधन, कारखानों और बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है, जो विदेशों में कहीं ज्यादा महंगे हैं. नतीजतन, ये देश जेनेरिक दवाओं के आयात पर निर्भर हैं. ऐसे में अगर वे भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाते हैं तो यह अपनी जनता को खतरे में डालने के समान होगा.