बांग्लादेश : यूनुस राज में हिंदू महिलाओं से बलात्कार की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि, HRCBM की रिपोर्ट

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नई दिल्ली : बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की मुखिया मोहम्मद यूनुस के राज में वहां हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक महिलाओं की जिंदगी नर्क बन गई है. अल्पसंख्यक महिलाओं से बलात्कार के मामलों की बाढ़ आ गई है. हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि यौन हमलों के बढ़ते मामलों की तुलना महामारी से की जा रही है. मानो ये मुल्क साउथ एशिया की माइनॉरिटीज रेप कैपिटल बन गया है.

रेप कैपिटेल ढाका! : पड़ोसी देश भयानक यौन हिंसा के बीहड़ दौर का सामना कर रहा है. हिंदू, ईसाई और बौद्ध महिलाओं और लड़कियों को चुन-चुनकर टारगेट किया जा रहा है. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के दौरान हालात कितने बेकाबू हो गए हैं उसकी जानकारी खुद किसी विदेशी संस्था या संगठन नहीं बल्कि बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के लिए मानवाधिकार कांग्रेस (एचआरसीबीएम) ने शुक्रवार सुबह दी है.

ढाका स्थित मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सलीश केंद्र (ASK) की रिपोर्टों का हवाला देते हुए, HRCBM ने कहा, 2025 की पहली तिमाही के दौरान तीन महीने से भी कम समय में आधिकारिक तौर पर बलात्कार के 342 केस दर्ज हुए, जिनमें 87 प्रतिशत में पीड़िताएं नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की थीं. वहीं जो मामले किसी वजह से दर्ज नहीं हो पाए होंगे उनकी स्थिति को लेकर भी चिंता जताई जा रही है.

गैंगरेप के मामले भी बेतहाशा बढ़े : बांग्लादेश में यौन हिंसा में मासूम बच्चों-बच्चियों को भी निशाना बनाया जा रहा है. यहां दर्ज मामलों में 40 पीड़ित शिशु अवस्था से लेकर छह वर्ष की आयु के बीच के बच्चे थे, वहीं गैंग रेप यानी सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिनमें से अधिकांश पीड़ित नाबालिग हैं. अधिकार संस्था के अनुसार, ये भयावह आंकड़े तो बस एक छोटा सा हिस्सा हैं, और वास्तविक संख्या हजारों में है, जो चुप्पी, भय और राज्य की निष्क्रियता के कारण छिपी हुई है. बांग्लादेश में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के ज्यादातर मामले सामाजिक कलंक, बदले की कार्रवाई के डर और न्याय व्यवस्था में अविश्वास के कारण दर्ज नहीं हो पाते.

रेप के मामले पुलिस दर्ज नहीं करती : अल्पसंख्यक महिलाओं और लड़कियों के मामले में तो यह खामोशी और भी गहरी है. कानून प्रवर्तन और निचली अदालतों में धार्मिक पूर्वाग्रह के आरोप परिवारों को न्याय पाने से रोकते हैं, जिससे अपराध दर्ज नहीं होते और सजा नहीं मिलती. HRCBM के बयान में कहा गया- ‘कई मामलों में, महिलाओं और लड़कियों के शव मिले हैं जिनके सिर तक गायब होते हैं यानी उनकी पहचान करना असंभव होता है. इससे अपराधियों की क्रूरता का पता चलता है.’

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