नई दिल्ली : दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान ‘हार्वर्ड यूनिवर्सिटी’ का दोहरा चेहरा सामने आया है. खुद को फ्री स्पीच का समर्थक कहने इस संस्था ने खालिस्तानियों के दबाव में आकर खालिस्तानी आतंकवाद और इससे भारत-कनाडा के संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर लिखे गए एक लेख को हटा दिया. इस आर्टिकल को अनपब्लिश करने पर यूनिवर्सिटी की कड़ी आलोचना की जा रही है.
लेख को किया गया अनपब्लिश : खालिस्तान से जुड़ा यह आर्टिकल यूनिवर्सिटी के ‘हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू’ में छापा गया था. इसे जिना ढिल्लन नाम की एक स्टूडेंट ने लिखा था. लेख का शीर्षक था, ‘ए थॉर्न इन द मेपल: हाउ द खालिस्तान क्वेश्चन इज रीशेपिंग इंडिया-कनाडा रिलेशंस.’ इस आर्टिकल को 15 फरवरी 2025 को हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू में पब्लिश किया गया था. लेख में भारत में बढ़ते खालिस्तानी आतंकवाद, कनाडा में इसका उदय और इससे भारत-कनाडा के प्रभावित होते रिश्ते के बारे में बताया गया था. आर्टिकल को 22 फरवरी 2025 को अनपब्लिश किया गया.
लेखिका का बयान : ‘हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू’ (HIR) ‘हार्वर्ड यूनिवर्सिटी’ में में ‘हार्वर्ड इंटरनेशनल रिलेशंस’ काउंसिल की ओर से प्रकाशित एक तिमाही पत्रिका है. इस आर्टिकल की लेखिका जीना ढिल्लन पंजाब से हार्वर्ड की स्टूडेंट हैं. पत्रिका में उन्हें हार्वर्ड की स्टाफ राइटर कहा गया था, लेकिन विवाद के बाद से अचानक HIR की वेबसाइट से उनका बायो गायब हो गया. ‘हार्वर्ड क्रिम्सन’ के मुताबिक जिना ढिल्लन ने लिखा,’ मुझे लगा कि HIR ने दबाव में आया. मेरे हिसाब से यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला था.’ हार्वर्ड क्रिम्सन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट न्यूजपेपर है.
दबाव से हटाया गया आर्टिकल : आर्टिकल को अनपब्लिश करने का फैसला HIR के एडिटर इन चीफ सिडनी सी ब्लैक और एलिजाबेथ आर प्लेस ने लिया. उन्होंने कहा कि यह आर्टिकल अस्थायी तौर पर सस्पेंड कर दिया गया है और इसमें आगे बदलाव होने तक इसे रिस्टोर नहीं किया जाएगा. ढिल्लन के पब्लिश बयान के मुताबिक वह अपनी बात पर अड़ी रहीं और किसी भी बदलाव के खिलाफ थीं. बताया जा रहा है कि HIR के संपादकों पर खालिस्तान समर्थक सिख संगठनों और हार्वर्ड के सिख पादरी हरप्रीत सिंह का काफी दबाव था.