अमेरिका : व्हाइट हाउस की बैठक में छाया रहा भारत, जॉर्जिया ने की नमस्ते तो NATO चीफ ने जोड़े हाथ

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नई दिल्ली : रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 3 साल से चल रहे खूनी युद्ध को खत्म करवाने के लिए सोमवार देर रात अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में ट्रंप की यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की और दूसरे यूरोपीय नेताओं के साथ अहम बैठक हुई. इस बैठक में भारत शामिल नहीं था लेकिन इसके बावजूद ‘भारत’ ही पूरी मीटिंग में छाया रहा.

इटली की पीएम ने नमस्ते करके जीत लिया दिल : दरअसल शांति वार्ता में भाग लेने के लिए सभी यूरोपीय नेता एक-एक करके अमेरिका के राष्ट्रपति निवास यानी व्हाइट हाउस पहुंच रहे थे. जिनका व्हाइट हाउस की सेक्रेटरी की ओर से अभिवादन किया जा रहा था. जब इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी वहां पहुंची तो उन्होंने पहले महिला सचिव से हाथ मिलाकर अभिवादन किया. इसके बाद हाथ जोड़कर भारतीय संस्कृति से नमस्ते कहकर उनका दिल जीत लिया. ऐसा करते हुए उनके चेहरे पर मुस्कुराहट और आत्मविश्वास साफ दिखाई दे रहा था.

नाटो महासचिव ने हाथ जोड़कर जताया आभार : ऐसा ही नजारा तब दिखाई दिया, जब राउंड टेबल टॉक में सभी यूरोपीय नेता, जेलेंस्की और ट्रंप आमने सामने बैठकर युद्ध खत्म करने के तरीकों पर चर्चा कर रहे थे. बैठक में मौजूद नाटो महासचिव मार्क रूट ने ट्रंप की पहल को सराहनीय बताते हुए कहा कि इससे यूक्रेन में विनाश रोकने में मदद मिलेगी. इसी बीच उनकी बात रोकते हुए ट्रंप ने उन्हें बताया कि युद्ध रोकने के लिए वे कितना कठिन प्रयास कर रहे हैं. उनकी बात सुनकर नाटो महासचिव ने भारतीय परंपरा का निर्वाह करते हुए हाथ जोड़कर ट्रंप का आभार जताया.

भारत की बात हुई सच साबित : केवल यही नहीं, पूरी बैठक में भारत के इस रवैये पर भी मुहर लगी कि शांति लाने के लिए रूस-यूक्रेन को आमने-सामने बैठकर बात करनी चाहिए. ट्रंप ने कहा कि जंग खत्म करवाने के लिए वे जल्द ही त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन करवाएंगे, जिसमें पुतिन और जेलेंस्की के साथ वे मौजूद होंगे. उनके इस प्रस्ताव पर यूरोपीय नेता ज्यादा सहमत नहीं दिखे लेकिन ट्रंप के दृढ़ रुख को देखते हुए वे न चाहते हुए भी हां मिलाने को मजबूर हो गए.

दूसरों के उकसावे में करवा लिया बड़ा नुकसान : यह एक तरह से पीएम मोदी के उस विचार की जीत थी, जो वे जंग शुरु होने के वक्त से ही कहते आ रहे थे कि यह युद्ध का दौर नहीं है. इसे खत्म करने के लिए दोनों देशों को आमने-सामने बैठकर बात करनी चाहिए. वे इस बात को पुतिन और जेलेंस्की समेत पूरे विश्व समुदाय के सामने कई बार दोहरा चुके थे. लेकिन यूरोपीय देशों और अमेरिका ने यूक्रेन को उकसाकर और उसे हथियार सप्लाई करके युद्ध को 3 साल तक खिंचवा दिया. जिसमें दोनों देशों के हजारों लोगों की मौत के साथ ही यूक्रेन का बड़ा हिस्सा भी उसके हाथ से निकल गया.

पूरे वक्त बैठक में छाया रहा ‘भारत’ : अब सब कुछ खोकर यूक्रेन को आखिरकार भारत की ओर से कही जा रही बात को ही मानने के लिए राजी होना पड़ा और रूस के साथ सीधी बातचीत के लिए सहमति देनी पड़ी. कुल मिलाकर शांति वार्ता का हिस्सा न होकर भी ‘भारत’ पूरे वक्त वक्त बैठक में छाया रहा और आखिर उसकी बात ही वैश्विक शक्तियों को माननी पड़ी.

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