बिहार : ‘भूरा बाल’ से ‘फालतू कुंभ’ तक…, RJD के तेजस्वी को लालू के ‘बड़बोले’ बयानों से होगा जूझना

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पटना : राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, देश के भूतपूर्व रेल मंत्री और बिहार के भूतपूर्व लालू प्रसाद यादव बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जून में 77 साल के हो जाएंगे। माना जाता है कि वह जब तक रहेंगे, बिहार की राजनीति में धुरी बनकर रहेंगे। वह अपने बड़े बेटे को मंत्री और छोटे बेटे को उप मुख्यमंत्री बनवा चुके हैं। एक बार नहीं, दो-दो बार। अब छोटे बेटे को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने की बात कह रहे हैं। लेकिन, वह बीच-बीच में बेटे के लिए ही मुसीबत खड़ी कर दे रहे हैं। जैसे 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के आसपास राष्ट्रीय जनता दल के पोस्टरों से कुछ समय के लिए लालू यादव गायब हुए थे, कहीं वही हालत पांच साल बाद करना तेजस्वी यादव की मजबूरी न बन जाए। परिस्थितियां तो यही इशारा कर रहीं।

भूरा बाल साफ करो… के कारण तेजस्वी के पैर अब भी बंध रहे : तेजस्वी यादव नई तरह की राजनीति कर रहे। उन्हें पता है कि उनकी जाति, यानी यादवों का वोट ज्यादातर उनके साथ है और आगे भी इसमें बहुत बिखराव लाने वाला सामने से कोई ‘योद्धा’ नहीं है। भारतीय जनता पार्टी का डर कायम रहने के कारण ज्यादातर मुसलमान अब भी उनके वोटर हैं। यानी, पिता लालू यादव का बनाया MY (मुसलमान-यादव) समीकरण उनके काम आता रहेगा। लेकिन, लालू का ही दिया नारा ‘भूरा बाल (भूमिहार-राजपूत-ब्राह्मण-लाला) साफ करो’ उनकी राह में अब भी रोड़ा बना हुआ है। दिवंगत सुशील मोदी जब तक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे, वोटरों को लालू का यह नारा याद दिलाते रहे। चुनाव आ रहा है तो लालू के पुराने नारों पर भाजपा-जदयू का काम चल रहा है। उस समय का वीडियो नहीं, लेकिन खबरें खोजकर वायरल करने की तैयारी है। वैसे, तेजस्वी भी जानते हैं कि इस नारे के कारण ही उनके पैर कई बार बंध जा रहे हैं।

कुंभ फालतू है… के पहले भी लालू लगातार कुछ-न-कुछ बोल चुके : लालू यादव पत्नी राबड़ी देवी और बेटों के साथ बीच-बीच में मंदिरों की परिक्रमा भी कर चुके हैं, लेकिन उनके सनातन विरोधी बयानों के कारण तेजस्वी के लिए बार-बार मुसीबत सामने आ जा रही है। तेजस्वी यादव सबकुछ सोचकर बोल रहे, जबकि लालू हमेशा विवादित बयान दे ही दे रहे। अभी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ और उससे पहले प्रयागराज में ऐसी ही घटना को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए लालू यादव ने बाकी बातों के साथ यह भी कह दिया कि ‘फालतू है कुंभ’। इसपर राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। चुनावी साल में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड ने भी इसे लेकर लालू को घेर रखा है। इससे पहले लालू ने मुख्यमंत्री की यात्रा शुरू होने के पहले ‘आंख सेंकने जा रहे हैं’ बोलकर महिलाओं के बीच इतना हंगामा खड़ा कर दिया कि उसे ठंडाने के लिए तेजस्वी को घोषणा पत्र से पहले ही ‘माई बहिन मान योजना’ का पटाक्षेप करना पड़ा।

लालू के इन बयानों को भाजपा बनाने वाली है मुद्दा :

  • अयोध्या श्रीराम मंदिर की रथ यात्रा रोकने के लिए चर्चित रहे लालू ने पिछले साल प्राण प्रतिष्ठा से पहले कहा था- “बाबरी-विध्वंस के लिए आडवाणी-मोदी सब जिम्मेदार हैं।”
  • पिछले साल मई में लालू प्रसाद ने धर्म के आधार पर आरक्षण का समर्थन करते हुए कहा था- “मुसलमानों को आरक्षण जरूर मिलना चाहिए।”
  • पिछले साल दिसंबर में लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार की यात्रा में महिला संवाद की बात पर कहा था- “वह तो आंख सेंकने के लिए जा रहे हैं।”
  • इस साल भी जनवरी तक लालू प्रसाद तेजस्वी से उलट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए कह रहे थे- “अभी भी चुनाव में समय है, वापस आने पर स्वागत है।”

81.99 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की, इसका ध्रुवीकरण रोकना तेजस्वी के लिए चुनौती : बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद आरक्षण का दायरा बदला था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट में मामला होने के कारण सब अटका हुआ है। उस रिपोर्ट का इस बार विधानसभा चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दल उपयोग करेंगे। उसी रिपोर्ट के हिसाब से जातीय आधार पर कमोबेश सीटें बंटेंगी। उस रिपोर्ट ने यह तो साफ कर दिया था कि बिहार में सबसे ज्यादा संख्या यादव जाति के लोगों की है और सामान्य जातियों को मिलाकर जितनी संख्या होती है, उससे कुछ ही कम हैं यादव। ऐसे में तेजस्वी अपनी जाति के साथ नजर आएंगे, इससे भी इनकार नहीं। यह तो वैसे भी लालू प्रसाद का फार्मूला है। लेकिन, हिंदू धर्म की बाकी जातियों के साथ यादवों के अंदर भी कट्टर सनातन की जो बातें हैं, वह लालू के बयानों के कारण तेजस्वी यादव के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। मतलब, कुंभ फालतू है… वाली बात निकली है तो दूर तक जा सकती है। भाजपा इसकी तैयारी में है भी, क्योंकि जातीय जनगणना की रिपोर्ट भी कह चुकी है कि बिहार में 81.99 प्रतिशत यानी लगभग 82% हिंदू हैं। इस्लाम धर्म के मानने वालों की संख्या 17.7% है। शेष ईसाई सिख बौद्ध जैन या अन्य धर्म मानने वालों की संख्या 1% से भी कम है।

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