नई दिल्ली : तिब्बत के धार्मिक नेता तुलकू हंगकर दोरजे की मौत पर चीन सरकार के अफसरों की कारगुजारियों की जमकर लानत मलानत हो रही है. दोरजे की असमय और संदिग्ध मौत की पुष्टि सेंट्रल तिब्बतियन एडमिनिस्ट्रेशन ने की है. सीटीए के मुताबिक, चीनी अधिकारियों ने लुंगनगोन मठ के वरिष्ठ अधिकारियों को 2 अप्रैल को उनकी मौत की जानकारी दी. हालांकि, चीन के अधिकारियों ने अबतक उनकी मौत की वजह का खुलासा नहीं किया है और ना ही उनका शव लौटाया है.
चीन का फरमान मानने से इनकार : तिब्बत डॉट नेट की रिपोर्ट के मुताबिक लुंगनगोन मठ के तुलकू हंगकर दोरजे पर चीन की सरकार लगातार निशाना साध रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने क्षेत्र में चीन द्वारा नियुक्त पंचेन लामा की यात्रा के दौरान उनके भव्य स्वागत समारोह की मेजबानी करने से इनकार कर दिया था. इससे भड़के चीनी अफसरों ने उनकी नाफरमानी को लेकर तमाम मनगढ़ंत आरोप लगाए गए. CTA ने बताया कि दोरजे पर अशांति फैलाने का आरोप भी लगाया गया था, क्योंकि वो चीनी प्रशासन द्वारा सताए गए पीड़ित तिब्बतियों के अधिकारों और स्वतंत्रता की लगातार वकालत कर रहे थे.
संदिग्ध परिस्थिति में मौत पर उठे सवाल : सूत्रों के मुताबिक चीनी हिरासत में हुई मौत का जो पुराना पैटर्न चला आ रहा था, दोरजे की मौत बस उसका एक एक्सटेंशन है. क्योंकि इससे पहले भी तिब्बती संस्कृति, भाषा और पहचान को बढ़ावा देने वाले प्रभावशाली तिब्बती लोगों का उत्पीड़न करने का चीनी अधिकारियों का पुराना इतिहास रहा है. बीते कुछ सालों में तिब्बती अधिकारों के पैरोकारों को चुप कराने के मकसद से कई तिब्बती नेताओं को हिरासत में लिया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया और आखिर में जान से मार दिया गया.
सीटीए के मुताबिक, तुलकु हंगकर दोरजे की मौत को तिब्बत पर चीन के नियंत्रण को चुनौती देने वाली आवाजों को खत्म करने के उद्देश्य से दमन की एक और एक अगली कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है. उनकी मौत की परिस्थितियों ने दुनिया भर के तिब्बतियों और मानवाधिकार समूहों में व्यापक आक्रोश और चिंता पैदा कर दी है, जो चीनी शासन के तहत तिब्बतियों द्वारा सामना किए जा रहे कठोर और दमनकारी माहौल को और रेखांकित करता है. कई लोगों को डर है कि अगर चीन ने अपना ये रवैया बंद नहीं किया तो तिब्बतियों का नामोनिशान मिट सकता है.