नई दिल्ली : पिछले 28 दिन में 14 भूकंप ऐसे आए हैं, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 से ज्यादा रही. ऐसे भूकंपों का सिलसिला आने वाले दिनों में बढ़ेगा, ऐसी आशंका देश के भूगर्भशास्त्रियों ने जनवरी में ही जताई थी. जब उत्तरकाशी में 7 दिन में भूकंप के 9 झटके दर्ज किए गए थे. देश के उत्तरी इलाकों में महसूस किए जा रहे लगातार भूकंप के झटकों का हिमालय से क्या कनेक्शन है? क्या हिमालय में हो रही है कोई रहस्यमयी भूगर्भीय हलचल…?
फरवरी की आखिरी सुबह जिस वीडियो ने भूगर्भशास्त्रियों को भी चौंकाया, वो बद्रीनाथ धाम के पास माणा गांव के इलाके से आई. भूगोल की भाषा में एवलांच यानी बर्फीला तूफान और इसकी संभावना इस क्षेत्र में आम है. लेकिन बर्फ से लदा ये पहाड़ जारी बर्फबारी के बीच ऐसे भरभरा कर गिरेगा, ये हैरान करने वाली बात है.
ऐसे तूफान की आशंका दूर दूर तक नहीं थी, इसलिए बद्रीनाथ हाईवे से बर्फ हटाने का काम बेधड़क चल रहा था. इस दौरान बर्फीला तूफान ऐसे कहर बनकर टूटा, कि 57 मजदूर फंस गए. बद्रीनाथ एवलांच को लेकर ये सवाल दो वजहों से उठ रहा है. एक तो बर्फीले तूफान के पीछे कोई ठोस हालात नहीं दिख रहे थे. और दूसरी वजह ये, कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में लगातार भूकंप महसूस किए जा रहे थे.
ये महज संयोग नहीं हो सकता, कि शुक्रवार की सुबह बद्रीनाथ में ये बर्फीला तूफान कहर बनकर टूटा, उसके कुछ घंटे पहले ही नेपाल में 6.1 की तीव्रता वाला भूकंप आया था. यानी बद्रीनाथ के बर्फीले तूफान के पीछे भूगर्भशास्त्री भी हिमालय की हलचल से इंकार नहीं कर रहे. हालांकि इस क्षेत्र में भूकंप की कोई रिकार्ड नहीं है. लेकिन भूगर्भीय हलचल की तरंगे इतनी ताकतवर होती हैं, कि बर्फीली चोटियों और ग्लेशियर की तलहटी में दरारें चौड़ी कर जाती हैं. ऐसा सिर्फ बद्रीनाथ ही नहीं, बर्फीले तूफानों के पीछे भूकंप की घटनाएं काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं. प्रोफेसर बिष्ट इस घटना को कुछ ऐसे समझाते हैं.
हिमालय में अनिष्ट की आशंका, उत्तरकाशी में दिखा था ट्रेलर : उत्तरकाशी में जनवरी महीने में लगातार आए भूकंपों के बाद भूगर्भशास्त्री ऐसी आशंका जता चुके थे, कि हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन से लेकर बर्फीले तूफान और कई तरह की तीव्रता वाले भूकंप बढ़ेंगे. इनमें से एक विशेषज्ञ प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट भी हैं, जो श्रीनगर विश्वविद्याल में भूगर्भशास्त्र के विभागाध्यक्ष हैं. इन्होंने जैसी आशंका जताई थी, वैसी ही हलचल हिमालयी क्षेत्र में पूरे फरवरी महीने में दिखाई दी.
हिमालय में हो रही इस हलचल का इंपैक्ट देखिए. फरवरी महीने में पाकिस्तान से लेकर कश्मीर के कुपवाड़ा, उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भूकंप के लगातार झटके दिखे. पाकिस्तान में 28 फरवरी और नेपाल में भी इसी दिन 6.1 की तीव्रता वाला भूकंप दर्ज किया गया. हिमालय के पूर्वी दूसरी तरफ तिब्बत में भी 28 फरवरी को ही भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए. इसी तरह नेपाल के साथ लगे असम और बंगाल के इलाकों में भी भूकंप के झटके 24 घंटे पहले ही रिकार्ड गए गए.
कम तीव्रता वाले भूकंप क्या किसी बड़े जलजले की आहट? : फरवरी में आए कई भूकंपों की तीव्रता भले ही 4 से पांच के बीच की थी, लेकिन इसका असर पटना, दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों तक महसूस किए गए. इसमें एक खास बात ये भी थी, कि सभी भूकंपों की गहराई 8 से 12 किलोमीटर ही थी. भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक जिस भूकंप का केंद्र जितना कम गहरा होता है, धरती की सतह पर होने वाला नुकसान उतना ही बड़ा होता है.
भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक इस बार हिमालयी क्षेत्र में हलचल पिछले रिकार्ड्स से ज्यादा दर्ज हो रही है. अब तक तो गनीमत ये है कि जनवरी से अब तक आए भूकंपों की तीव्रता 6 से ज्यादा नहीं है. इनका केन्द्र कम गहरा होना चिता का विषय जरूर है, लेकिन असली खतरा 6 से ज्यादा तीव्रता वाले भूकंपों की है. तो क्या, कम तीव्रता वाले ये लगातार भूकंप, किसी बड़े जलजले की आहट हैं? हिमालय के भीतर आखिर ऐसी कौन सी बनावट है, जो तबाही के इस खतरे को दावत दे रही है.
टिथिस सागर के मलबे से हुआ हिमालय का निर्माण! : जहां आज हिमालय है, वहां 225 करोड़ साल पहले टिथिस सागर हुआ करता था. धरती के अंदर समुद्री और महाद्वीपीय प्लेटों की बदलती गति के कारण इस समुद्र ने भारतीय प्लेट को एशिया और यूरोप के प्लेट से अलग किया था. इस भूगर्भीय बदलाव के साथ टिथिस सागर का अस्तित्व जैसे जैसे खत्म होता गया, वैसे वैसे भारतीय प्लेट की गति यूरोप और एशिया के साझे प्लेट, जिसे यूरेशियन प्लेट कहा जाता है, उसकी तरफ बढ़ती रही.
भारतीय और यूरेशियन प्लेट के करीब आने से टिथिस सागर पर दबाव बढ़ा. इस दबाव से टिथिस सागर का मलबा ऊपर उठा और फिर उसी मलबे से 3 हिस्सों में हिमालय का निर्माण हुआ. हिमालय के उन तीन हिस्सों में पहला है ग्रेटर यानी वृहद हिमालय जिसमें माउंट एवरेस्ट जैसी ऊंची चोटियां हैं, उसके बाद मिडिल यानी मध्य हिमालय, जिसमें हिमालय क्षेत्र के बीच का हिस्सा है. इसके बाद हिमालय का सबसे निचला हिस्सा, जिसमें छोटे पहाड़ हैं, उसे लघु हिमालय कहते हैं.
हिमालय के इन तीनों हिस्सों के बीच धरती के नीचे एक ऐसी फॉल्टलाइन है, जो पूरे क्षेत्र में भूकंप की वजह मानी जाती है. बृहद और लघु हिमालय के बीच यह बेहद खतरनाक ‘फॉल्ट लाइन’है. करीब 2900 किमी लंबी फॉल्ट को मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) कहते हैं. उत्तरकाशी की लोकेशन इसी मेन सेंट्रल थ्रस्ट यानी एमसीटी फॉल्टलाइन के पास है. फॉल्टलाइन धरती के नीचे वो प्वाइंट होता है, जहां दो प्लेटों में घर्षण होता है. इस घर्षण से ऊर्जा और हलचल तेज होती है.
सिल्क्यारा सुरंग हादसा : एमसीटी फॉल्टलाइन की सुर्खियां आपने डेढ़ साल पहले जरूर सुनी होगी जब उत्तरकाशी के पास सिल्क्यारा सुरंग में बीच में से धंस गई थी. तब बहुत सारे जानकारों ने यहां सुरंग जैसे निर्माण की आलोचना की थी, क्योंकि ये एमसीटी फॉल्टलाइन के पास है. अब आइए समझते हैं, ये भूकंप के लगातार झटके क्या संकेत दे रहे हैं.
छोटे स्केल के भूकंपों को प्रीकर्सर शॉक्स कहते हैं. ये इस बात के संकेत देते हैं, कि धरती के नीचे प्लेटों में हलचल है. हालांकि कोई जरूरी नहीं, कि इसके बाद बड़ा भूकंप आए ही. लेकिन अगर बड़ा भूकंप यानी 6 से 8 के स्केल के भूकंप अगर आते हैं, तो इसके बाद भी लगातार झटके आते हैं. इन्हें आफ्टर शॉक्स कहा जाता है. यानी भूस्खलन और भूकंप की घटनाओं से जो हिमालयी क्षेत्र लगातार अस्थिर दिख रहा है, उसके पीछे हैं यही हलचल. ये हलचल इसलिए, क्योंकि हिमालय अब भी अपने निर्माण की प्रक्रिया में है…ये लगातार ऊंचा हो रहा है और फैल भी रहा है.