फ्रांस : मिशेल बार्नियर सरकार विश्वास मत हारी, फ्रांसीसी नेशनल असेंबली में हुआ शक्ति परीक्षण 

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नई दिल्ली/पेरिस : फ्रांस से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। जहां फ्रांस के प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर की सरकार फ्रांसीसी नेशनल असेंबली में विश्वास मत हार गई। देखा जाए तो विश्वास मत में हार के बाद दो तरह की चिंताएं फ्रांस के लिए बढ़ गई है। एक तो ये कि मिशेल बार्नियर सरकार की राजनीति पर इसका कैसा असर रहेगा तो दूसरी ओर देश की बजट की चिंता भी बढ़ गई।

फ्रांस की राजनीति पर संकट : अविश्वास मत में हार को लेकर जारी रिपोर्ट के अनुसार फ्रांसीसी संसद के 577 सीटों वाले निचले सदन में 331 सदस्यों ने बार्नियर की अल्पसंख्यक सरकार को हटाने के लिए मतदान किया, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी, जबकि फ्रांस बढ़ते बजट घाटे का सामना कर रहा है। यह मतदान अति-वामपंथी और अति-दक्षिणपंथी विपक्षी दलों द्वारा शुरू किया गया था, जब बार्नियर ने संसदीय अनुमोदन के बिना बजट उपायों को पारित करने के लिए विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया था।

राष्ट्रपति को सौंप सकते है इस्तीफा : जानकारी के अनुसार बार्नियर की सरकार छह दशकों में पहली सरकार बन गई है जिसे अविश्वास मत से हटाया गया है। इसके बाद उम्मीद की जा रही है कि वे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन को अपना इस्तीफा सौंपेंगे। वहीं यूरोन्यूज के अनुसार, वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) गठबंधन और दक्षिणपंथी नेशनल रैली (आरएन) पार्टी ने मिलकर अविश्वास प्रस्ताव में बार्नियर को हटाने के लिए मतदान किया।

सबसे कम समय के पीएम बने बार्नियर : बता दें कि विश्वास मत पर वोटिंग में हारने के बाद वे फ्रांस के इतिहास में सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले व्यक्ति भी बन गए हैं। 73 वर्ष की उम्र में, बार्नियर ने सिर्फ 91 दिन प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की। वहीं, उनकी सरकार मात्र 74 दिन ही चली।

बार्नियर सरकार का दो अविश्वास मतों का हुआ सामना : बार्नियर की सरकार को दो अविश्वास मतों का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने संसद को दरकिनार कर सामाजिक सुरक्षा बजट विधेयक को पारित करने के लिए फ्रांसीसी संविधान के अनुच्छेद 49.3 का इस्तेमाल किया। अब यह विधेयक खारिज कर दिया गया है।

बता दें कि बार्नियर ने राष्ट्रपति मैक्रोन की पार्टी और दक्षिणपंथी लेस रिपब्लिकन (एलआर) से बनी एक नाजुक अल्पसंख्यक सरकार का नेतृत्व किया था, लेकिन यह गठबंधन बहुमत से रहित था। नेशनल असेंबली में 124 सीटों के साथ एरएन का प्रभाव भी महत्वपूर्ण था। वर्तमान संविधान के तहत, मैक्रोन अगले जुलाई तक नए चुनाव नहीं करा सकते, जिसका मतलब है कि किसी भी नई सरकार को कई दलों को साथ लेकर चलना होगा।

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