पालमपुर : हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की खूबसूरत वादियां, जहां दूर-दूर तक नज़र आती हैं हरी-भरी पहाड़ियां. इन्हीं पहाड़ियों के शीर्ष पर है बाबा बैजनाथ का सैकड़ों साल पुराना मंदिर. वो पवित्र स्थान जहां भगवान अर्धनारीश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. जिसका ग्रंथों में भी प्रमाण है. यूं तो यहां हर दिन शिवभक्तों का तांता लगा रहता है. मगर सावन के सोमवार को नज़ारा ही अलग होता है. बम बम भोले के जयकारे. भक्तों के भजन-कीर्तन और झाल-मंजीरा की आवाज़ से पूरा इलाका गूंज उठता है.
कहते हैं कि सावन के सोमवार को भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना को पलक झपकते ही पूरी कर देते हैं. यही वजह है कि दूर-दूर से आए सैकड़ों-हज़ारों श्रद्धालु सावन के हर सोमवार को अपनी इच्छा पूर्ति के लिए बैजनाथ मंदिर पहुंचते हैं और भक्ति भाव से उनकी पूजा अर्चना कर अपने संकल्प सिद्धी की कामना करते हैं.
बैजनाथ धाम का इतिहास क्या है? : मान्यता है कि इस मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है.. हिंदू ग्रंथों में लिखा है कि इसी स्थान पर लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दस हज़ार वर्षों तक कठिन तप किया और भगवान शिव को 10 बार अपना सिर काटकर अर्पित किया. तब जाकर भगवान अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए और रावण को दिव्य दर्शन दिए.
हिंदू ग्रंथों के मुताबिक जब महादेव ने रावण से उसकी मनोकामना पूछी तो रावण ने कहा कि वो उन्हें लंका ले जाना चाहता है. तब भगवान शिव ने कहा कि मैं तो नहीं जा सकता लेकिन अपना आत्म लिंग तुम्हें देता हूं. लेकिन रावण इस शिवलिंग को लंका नहीं ले जा पाया और नौंवीं शताब्दी में पांडवों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया.
अर्धनारीश्वर के रूप में कहां स्थापित हैं भोलेनाथ? : तब से आज तक कई सदियां बीत गई. कितने काल खंड गुज़रे. सृष्टि में कई बदलाव आए लेकिन बाबा बैजनाथ का ये मंदिर इसी स्थान पर जस का तस टिका है.. साथ ही टिकी है भक्तों की आस्था. यहां भगवान अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं. मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है. एक तरफ भगवान शिव का रूप है तो दूसरी तरफ माता पार्वती.
जितना चमत्कारी बाबा बैजनाथ का ये मंदिर है. उतनी ही चमत्कारी है मंदिर के दाईं ओर बहने वाली खीर गंगा नदी. जिसके जल और बेलपत्र से अर्धनारीश्वर भगवान की पूजा की जाती है. कहते हैं कि सावन के सोमवार के दिन जो भी इस मंदिर के शिवलिंग पर गंगाजल और बेलपत्र चढाता है. उसके सभी कष्टों का निवारण होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है .
वो जगह जहां श्राप आज भी जिंदा है! : हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में बसा बैजनाथ एक ऐसा शहर जो श्रद्धा, आस्था और रहस्य का संगम है. यहां भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है. जो अर्धनारीश्वर स्वरूप में है. लेकिन इस शहर की खास बात सिर्फ शिवलिंग या रावण की कथा नहीं है. यहां एक ऐसी मान्यता है. जो पूरे भारत में शायद ही कहीं और हो और वो ये कि बैजनाथ में सुनार नहीं बसते.
मंदिर के चारों ओर भीड़ है. आस्था है. चढ़ावा है लेकिन एक चीज नदारद है और वो है सुनार की दुकान. न तो यहां सुनार की दुकान है ही न गहनों की बिक्री. कहा जाता है कि बैजनाथ में अगर कोई सुनार दुकान खोलता है तो या तो उसे भारी नुकसान झेलना पड़ता है या फिर दुकानें चलती ही नहीं. कभी आग लग जाती है. कभी बीमारी आती है और कभी मौत दस्तक देती है.
जब मां पार्वती हो गईं रुष्ट : पौराणिक कथाओं की मानें तो ये माता पार्वती का श्राप है, जो लंका में हुए एक धोखे के बाद उन्होंने दिया था. जब लंका का निर्माण हो रहा था..उस दिन सबसे पहले पूजा होनी थी विश्वकर्मा जी की. तभी एक चालाक सुनार खुद को विश्वकर्मा बताकर वहां पहुंच गया और पूजा का पहला हिस्सा. यानी प्रतिष्ठा का पुण्य वो खुद ले गया.
कुछ ही देर बाद असली विश्वकर्मा वहां आए और सारा धोखा सामने आ गया. इससे माता पार्वती क्रोधित हो उठीं और क्रोध में उन्होंने उस सुनार को श्राप दिया. कहा कि जहां भी मैं और शिव एक साथ होंगे, वहां कोई सुनार नहीं टिकेगा. आज बैजनाथ में शिव और पार्वती अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं. यानी दोनों एक साथ हैं. यही वजह है कि इस पवित्र शहर में सुनारों के लिए कोई स्थान नहीं है.
माता पार्वती का श्राप भोग रहे सुनार : बैजनाथ के बाजारों में सब कुछ मिलेगा. फल, फूल, मिठाई, कपड़े, प्रसाद. लेकिन अगर नहीं मिलेगा तो वो है सोने का व्यापारी और सुनार की दुकान. सुनारों ने कोशिशें भी कीं. कुछ बाहर से आकर बसे. पर सबका अंत एक ही रहा. नुकसान और विनाश.
बैजनाथ की एक और बड़ी बात है यहां रावण का मंदिर. यहां दशहरे पर पुतला नहीं जलाया जाता. मान्यता है कि रावण भोलेनाथ का सबसे बड़ा भक्त था. इसलिए यहां रावण को सम्मान से देखा जाता है.
रावण का पुतला नहीं जलाया जाता : यही है बैजनाथ धाम जहां रावण पूजा जाता है. जहां दशहरा नहीं मनाया जाता. जहां शिव और पार्वती एक साथ विराजे हैं. जहां कोई सुनार नहीं बस पाता. ये वो जगह है जहां सोने की चमक को देवी का श्राप निगल जाता है. शिव की भूमि, श्राप का असर. श्रद्धा और खौफ का मिलाजुला भाव बैजनाथ केवल मंदिर नहीं एक जीवित इतिहास है. जहां हर ईंट, हर पत्थर कोई न कोई कथा कहता है.