नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हिजबुल प्रमुख सैयद सल्लाउद्दीन के बेटे शाहिद यूसुफ की जमानत की अपील खारिज कर दी। हालांकि, उसके भाई को कोर्ट ने जमानत दे दी है। दोनों भाइयों ने टेरर फंडिंग मामले में जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
शाहिद यूसुफ की अपील खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह अदालत अभियोजन पक्ष द्वारा सामने लाई गई उस बड़ी साजिश को नजरअंदाज नहीं कर सकती जो राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा है।
यह मामला उस जांच से शुरू हुआ जब दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ को सूचना मिली कि पाकिस्तान से आने वाले धन को दिल्ली के रास्ते हवाला चैनलों के जरिए जम्मू-कश्मीर भेजा जा रहा है, जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों को वित्तपोषित करना है। इस सूचना के आधार पर 2011 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। बाद में जांच एनआईए को सौंप दी गई।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की खंडपीठ ने शाहिद यूसुफ की अपील खारिज कर दी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने सैयद अहमद शकील की अपील स्वीकार कर ली है। उन्हें एक लाख रुपये के जमानत बांड और दो जमानत राशि जमा करने पर जमानत दी गई है।
शाहिद यूसुफ की जमानत याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि आरोपों की प्रकृति और रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री से प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता की इस साजिश में संलिप्तता और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के ज्ञात सदस्यों के साथ उसके सीधे संपर्क की पुष्टि होती है।
न्यायालय ने फैसले में कहा कि उस पर आरोप है कि उसने सह-आरोपी ऐजाज अहमद भट उर्फ ऐजाज मकबूल भट से धन प्राप्त किया, यह जानते हुए कि धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाएगा।
हालांकि शाहिद यूसुफ के वकील ने उनकी लंबी कैद पर जोर दिया और दलील दी कि वह सात साल चार महीने से हिरासत में हैं, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए, उन्हें नियमित जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने यूसुफ के वकील की दलीलें खारिज कर दीं।