नई दिल्ली : भारत से साढ़े 8 हजार किलोमीटर दूर इंडोनेशिया की राजधानी बाली में एक रहस्यमय मंदिर है. जिसकी रखवाली कई सदियों से दुनिया के सबसे जहरीले सांप कर रहे हैं. बाली के लोग इन्हें शेषनाग की सेना कहते हैं? इसकी वजह ये है कि जहरीले सांप मंदिर में आने वाले भक्तों को कभी नहीं डसते और अंधेरा होते ही गायब हो जाते हैं. मंदिर की तरफ रुख करने वाली असुरी शक्तियों के लिए इन सर्पों को काल कहा जाता है.
इंडोनेशिया में भोलेनाथ की अद्भुत गुफा : काशी और कैलाश से हजारों किलोमीटर दूर इंडोनेशिया के बाली में समंदर के किनारे वो अद्भुत गुफा है, जहां शिव का निवास है. समुद्र के खारे पानी के बीच शिव गुफा में आखिर गंगाजल जैसा पवित्र और मीठा पानी कहां से आता है. कहा जाता है इस गुफा के दर्शन करने के बाद किसी भी काम शुरू करने वाले को शिवकृपा मिल जाती है. समुद्र में तैर रहे इस मंदिर के देवता बाली की तरफ आने वाले हर संकट से रक्षा करते हैं.
मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया के बाली शहर में 83 फीसदी हिंदू आबादी है. यहां पर हजारों रहस्यमय मंदिर हैं, जिनमें ब्रह्मा..विष्णु और महादेव की अराधना..यहां वैसे ही की जाती है…जैसे हमारे देश भारत में होती है. इसी बाली में समंदर के किनारे मौजूद है वो मंदिर, जिसकी रक्षा शेषनाग की सेना करती है. वो शेषनाग जिनके दर्शन आम आदमी नहीं कर सकता. उन्हें बाली निवासी शिव का दिव्य नाग बुलाते हैं.
समंदर किनारे मौजूद उस दिव्य और अदभुत मंदिर को स्थानीय लोग ता-ना-ह लोट मंदिर कहते हैं. इस मंदिर में स्थानीय लोगों की बहुत आस्था है. उनकी मान्यता है इस मंदिर के देवता. वे शरीर को नहीं आत्मा को पवित्र करते हैं. यह मंदिर समुद्र में स्थित एक चट्टान पर बना है और यहां समुद्र के देवता द्वा बारूना की पूजा की जाती है.
गुफा में रहती है शेषनाग की सेना : समुद्र के ऊपर एक चट्टान में बने ता-ना-ह लोट मंदिर के नीचे दो पवित्र गुफाएं हैं. एक गुफा में शिव के दिव्य सर्प रहते हैं और दूसरी गुफा में साक्षात शिव का वास माना जाता है. इसी गुफा में समुद्र के खारे पानी के बीच चमत्कारिक रूप से पवित्र मीठा जल मिलता है. जो आज भी यहां पर आने वाले लोगों के लिए एक अबूझ पहेली है. जिन गुफाओं को समंदर रोज़ भिगोता है. वहां मीठा पानी कहां से आ रहा है और इस गुफा का शिव से क्या कनेक्शन है? क्यों इस जल से पवित्र होने के बाद ही मंदिर में जाने की मान्यता है?
सबसे पहले जब आप मंदिर में पहुंचते हैं तो शुचि होते हैं पवित्र होते हैं. इस गुफा में मीठा पानी आता है. वहां चट्टान के नीचे गहरी गुफा नजर आती है. यहां पर लोग आकर पवित्र होते हैं. यहां कामना की जाती है आपकी आत्मा को पवित्र करने की. इस गुफा के बाहर मौजूद पुजारियों के पास गुफा में चमत्कारिक रूप से निकलने वाला पवित्र जल है. जिसे वो यहां पर आने वाले लोगों पर छिड़कते हैं और लोगों के माथे पर पवित्र टीका लगाते हैं. शिव के आशीर्वाद के रूप में एक सफेद फूल उनके कानों के पास लगा दिया जाता है.
यहां पर रोजाना हजारों लोग इस दिव्य स्थान का दर्शन करने पहुंचते हैं. सदियों से यहां पर ये दिव्य मंदिर और गुफाएं मौजूद हैं. लेकिन किसी को नहीं पता. इस गुफा में ये दिव्य मीठा जल कहां से आ रहा है..जिसे स्थानीय लोग शिव की जटाओं से निकलने वाले गंगाजल जैसा पवित्र मानते हैं. यहां पर आने वाले लोग भी इस चमत्कार को शिव का आशीर्वाद ही मानते हैं.
श्रद्धालुओं को नहीं काटते जहरीले सांप : इस शिव गुफा के ठीक बगल में मौजूद है वो गुफा, जहां पर इस मंदिर के सबसे रहस्यमयी रक्षक यानी सबसे जहरीले सांप रहते हैं. सफेद या हल्का ग्रे रंग के इन सांपों के शरीर पर पड़ी नीली धारियां इन्हें विशेष बनाती हैं. एक गुफा जो रात में समुद्र के खारे पानी से भर जाएगी. वहां इस मंदिर के रक्षक माने जाने वाले सांपों की मौजूदगी का रहस्य सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है.
इस गुफा में शेषनाग की सेना का दर्शन करने वालों को जहरीले सर्प काटते नहीं हैं. जिन सांपों का जहर एक पल में किसी को मौत की नींद सुला सकता है…उनसे लोगों को डर क्यों नहीं लग रहा है. वो कौन सा आदेश है जिसने इस सांपों को किसी को डसने से रोक कर रखा है. इस बारे में पूछे जाने पर मंदिर के पुजारी ने बताया, एक राजा थे जो जावा से आए थे. उनका नाम डंग ह्यांग निरार्था था. उन्होंने अपने कमरबंद से ये जहरीले सांप निकाले थे. ये पृथ्वी और समुद्र के रक्षक हैं. ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं क्योंकि इनको इसकी आज्ञा नहीं दी गई है. ये यहां की मान्यता है. यही वजह है कि आप इन सांपों को आप छू सकते हैं और प्यार कर सकते हैं.
ये मंदिर 1600 ईसवी में बना. मान्यता है कि जावा से हिंदू धर्म के प्रचार के लिए यहां पर पहुंचे डंग ह्यांग निरार्था ने इस शापित स्थान पर मंदिर की स्थापना की और बुरी शक्तियों से समुद्र देवता के मंदिर की रक्षा के लिए कमर पर पहने जाने वाले एक कपड़े से इन दिव्य सर्पों को पैदा किया. जो सदियों से इस मंदिर की बुरी आत्माओं से रक्षा कर रहे हैं. रात में इस गुफा के अंदर समुद्र का पानी भर जाता है. जिसके बाद दिन में इस गुफा में निवास करने वाले ये दिव्य सर्प रात्रि में अदृश्य हो जाते हैं. इसके बाद लोग इनको सीधे मंदिर में देवता के पास देखते हैं. ये सर्प मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से दूर रहते हैं और यहां पर आने वाले लोग भी इस सांपों के रास्ते में नहीं आते.
दुनिया भर में फैली है सर्पों की चर्चा : यहां पर आने वाले जिन लोगों को इन सर्पों का आशीर्वाद मिल जाता है, माना जाता है कि उनको देवता का आशीर्वाद भी मिल गया है. ये सांप किसी को नुकसान क्यों नहीं पहुंचाते. इसके पीछे समुद्र के देवता का एक आदेश है. जिसकी वजह से ये सांप देवता के भक्तों के भी रक्षक बन गए हैं. अगर कोई इस मंदिर या देवता को नुकसान पहुंचाने की नीयत से यहां पर आएगा तो उसे इन सांपों को दूसरा रूप दिखाई देगा.
कहा जाते है कि गुफा में रहने वाले ये सर्प असली शेषनाग की सेना के सिपाही हैं. जो मंदिर और गुफा में आते जाते रहते हैं लेकिन मंदिर के रखवाले मुख्य सर्प हमेशा मंदिर में ही मौजूद रहते हैं. यानि देवता को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ते. इनके दर्शन भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता है. माना जाता है ये सर्प सैकड़ों वर्षों से लगातार मंदिर की सुरक्षा में जुटे हैं.
इन चमत्कारी सांपों की ख्याति सिर्फ बाली तक नहीं फैली बल्कि दुनिया भर में इनकी चर्चा होती है. भारत से यहां पर हर साल पहुंचने वाले लोग भी इनका दर्शन करना चाहते हैं. अगर कोई इन चमत्कारी सांपों को अपने साथ लेकर जाने की कोशिश करेगा..तो उनका क्या होगा? बाली में मान्यता है कि ऐसा करने वालों को सबसे पहले खुद ये सर्प सजा देंगे और उसके बाद समुद्र के देवता का कहर ऐसे लोगों पर बरसेगा.
भारत में नहीं दिखते नीली धारी वाले सांप : बाली में इन सांपों को बेहद पवित्र माना जाता है. इन्हें बालिनी हिंदू धर्म में एक दिव्य ऊर्जा का प्रतीक कहा जाता है. स्थानीय लोग इन्हें सिर्फ तानाह लोट मंदिर की रक्षक नहीं मानते बल्कि भगवान शिव के दिव्य नागों के रूप में इनकी पूजा जाते हैं. आपने इस तरह के सांप भारत में नहीं देखे होंगे. ये नीली धारी वाले इन सांपों को Blue Banded Krait कहा जाता है.
जिनका जहर शरीर के अंदर पहुंचने का मतलब मौत है. लेकिन तानाह लोट मंदिर के आस पास इन सांपों के हमलों की घटनाएं बहुत कम होती हैं क्योंकि इन्हें स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं और इनकी रक्षा करते हैं. इन सांपों की वजह से भी ये स्थान पवित्र होने के साथ साथ दुनिया भर में लोकप्रिय है. तानाह लोट मंदिर में देवता के रक्षकों के बाद बात उस देवता की. जिन्हें बाली का रक्षक भी माना जाता है.
एक चट्टान पर बना ये मंदिर आसमान से किसी पक्षी की तरह दिखाई देता है. जब हाईटाइड में समुद्र का पानी चढ़ जाता है तो ऐसा लगता है…जैसे ये मंदिर पानी में तैर रहा हो. हिंदू धर्म में समुद्र देवता को वरुण देवता कहा जाता है. जिसे बाली में बारूना या द्वा बारूना कहा जाता है. इस मंदिर के चारों तरफ लगभग 8 मंदिर और मौजूद हैं. जिसमें अन्य देवताओं की भी पूजा होती है. लेकिन मुख्य मंदिर में पूजा का मौका 210 दिन बाद मिलता है. इस वार्षिक पूजा को Odalan कहा जाता है. हर 210 दिनों बाद तानाह लोट मंदिर में पर्यटकों और स्थानीय हिंदू आबादी समुद्र के देवता की आराधना के लिए इकट्ठा होते हैं.
समुद्र देवता की पूजा के लिए जाते हैं लोग : सबसे आगे भारत में होने वाली शोभायात्राओं की तरह सबसे आगे ध्वज लेकर कुछ लोग चल रहे हैं. इसके बाद कुछ महिलाएं सिर पर कलश रख कर चल रही हैं. ऐसा कल्चर आपने भारत में देखा होगा. इसके बाद कुछ महिलाएं लंबी चादर लेकर आ रही थी. उसके पीछे देवता की पालकी है. स्थानीय लोग पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ इस शोभा यात्रा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. ये दृश्य बताते हैं कि वरुण देवता या समुद्र के देवता पर स्थानीय लोगों की आस्था कितनी गहरी है.
- तानाह लोट मंदिर के पास ही बराबान गांव मौजूद है. ये लोग उसी गांव के रहने वाले हैं. इस क्षेत्र में अधिकांश आबादी बालिनी हिंदू धर्म का पालन करती है.
- यहाँ के लोग स्थानीय देवताओं और प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान करते हैं और धार्मिक उत्सवों में इसकी झलक भी दिखाई देती है. यहां पूजा करने के लिए भक्तों को पहले पवित्र जल (Tirta) से शुद्ध होना पड़ता है.
मंदिर के आस-पास की पवित्र जलधारा में लोग स्नान करके, इसके जल को पीने और सिर पर छिड़कने से अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध करते हैं. इसके बाद भक्त देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं. स्थानीय बालिनी हिंदू कैलेंडर के हिसाब से कुछ विशेष दिनों में इस विशेष पूजा का आयोजन होता है.
8 हजार किमी दूर जिंदा है भारतीय संस्कृति : आपको भारत से 8 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूर मौजूद बाली में हिंदुस्तान की संस्कृति की झलक नजर आएगी. सांपों को पवित्र मानने वाले इस स्थान में तमाम हिंदू देवी देवताओं की पूजा होती है. तानाह लोट मंदिर को बाली की तरफ आने वाली हर बुरी शक्ति से रक्षा करने वाला माना गया है. आज भी इस मंदिर से जुड़े कई रहस्यों को सुलझाया नहीं जा सका है. दुनिया के लिए ये चमत्कार हो सकता है लेकिन बाली से लेकर भारत तक ये ऐसी आस्था है. जो समुद्र के देवता और भगवान शिव के गुप्त स्थान में जाकर खुद को पवित्र कर रही है.