जातिगत जनगणना से मुस्लिम जातियों के साथ धर्मांतरण के आंकड़े पर रहेगी नजर, सरकार की रणनीति 

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नई दिल्ली : पहलगाम आतंकी हमला मामले में पाकिस्तान से जारी तनातनी के बीच मोदी सरकार ने जाति गणना कराने का फैसला कर सभी को चौंका दिया है। हालांकि सरकारी सूत्र का कहना है कि यह फैसला अचानक नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। सरकार उचित समय का इंतजार कर रही थी, जिससे उसके विपक्ष के दबाव में न आने का संदेश जाए। जाति जनगणना के जरिये सरकार का इरादा महज हिंदुओं की ही नहीं बल्कि मुस्लिमों समेत अन्य धर्मों की जातियों की भी अलग-अलग संख्या और आंकड़ा एकत्रित करने के साथ आजादी के बाद धर्मांतरित हुए लोगों का आंकड़ा भी जुटाने का है।

मोदी सरकार के इस फैसले को देश में मंडल-2 की सियासत की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। सभी दलों की निगाहें ओबीसी वोट बैंक को साधने पर है। जाहिर तौर पर श्रेय लेने की इस सियासी जंग के कारण भविष्य में ओबीसी ही नहीं बल्कि एससी-एसटी आरक्षण के अंदर कोटा बनाने की मांग तेज होगी। इनमें ओबीसी आरक्षण को विभिन्न श्रेणियों में बांटने के लिए सरकार के पास रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का हथियार होगा तो एससी-एसटी आरक्षण को वर्गीकृत करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुना चुकी है। इसके इतर जाति गणना से पूर्व ही आरक्षण का दायरा बढ़ाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने की मांग तेज हो रही है।

मुस्लिमों में शामिल  36 जातियों को मिलता है आरक्षण का लाभ : सरकारी सूत्र ने कहा कि जातियों की गिनती महज बहुसंख्यक हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं रहेगी। यह प्रक्रिया अन्य धर्मों के लिए भी अपनाई जाएगी। मुसलमानों में भी जातियां हैं, अगड़े, पिछड़े और दलित हैं। इसी आधार पर इनमें शामिल 36 जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है। ऐसे में कोई यह नहीं कह सकता कि उसके यहां जाति नहीं है। दलित मानी जानी वाली जातियों को अरजाल कहा जाता है। पसमांदा जो पिछड़े मुसलमान में हैं, उनमें कुंजड़े, जुलाहे, धुनिया, कसाई, फकीर, मेहतर, धोबी, मनिहार, नाई जैसी कई जातियां हैं। इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को जानने के लिए भी गणना जरूरी है।

संतुलन साधना भाजपा की चुनौती : जाति गणना की घोषणा के बाद भाजपा के सामने अब खुद को एक ओर ओबीसी हितैषी होने और दूसरी ओर सामान्य वर्ग की नाराजगी के बीच संतुलन बैठाने की चुनौती है। सूत्रों का कहना है कि जाति गणना का फैसला संघ के फीडबैक के आधार पर लिया गया। ठीक उसी तरह जैसे संघ के फीडबैक के बाद सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने का फैसला किया गया था। सूत्र ने इस संदर्भ में कुछ महीने पूर्व प्रतिनिधि सभा में इस मुद्दे पर संघ की ली गई लाइन का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि इसका उपयोग राजनीति के लिए नहीं सामाजिक हितों को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए।

प्रश्नावली तैयार करना चुनौती : जाति गणना के लिए सरकार के लिए प्रश्नावली तैयार करना बड़ी चुनौती होगी। इसमें तकनीकी कमी के कारण ही 2011 के सर्वे में ओबीसी की 40 लाख जातियां-उपजातियां सामने आ गई थी।

सामान्य वर्ग का जारी हो सकता है एकमुश्त डाटा : देश में अंतिम जाति जनगणना आजादी से पूर्व 1931 में हुई थी। इसके बाद से महज अनुसूचित जाति-जनजाति का आंकड़ा जुटाए जाने के बावजूद अन्य जातियों की संख्या अनुमान के आधार पर व्यक्त की जाती रही है। इनमें ओबीसी और मुसलमानों की एकमुश्त संख्या बताई जाती है, जबकि सामान्य वर्ग के जातियों की अलग-अलग संख्या बताई जाती है। ऐसे में इस बार सामान्य वर्ग का एकमुश्त डाटा जारी किया जा सकता है।

धर्म परिवर्तन का कहां ज्यादा प्रभाव : सरकारी सूत्र ने संकेत दिया कि इस बार जाति गणना में धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों का भी आंकड़ा जुटाया जाएगा। धर्म परिवर्तन के कारण देश के कई हिस्सों की जनसंख्या और भौगोलिक संरचना में तेजी से बदलाव देखा गया है। ऐसे में सरकार का इरादा यह जानने का है कि किन धर्मों और जाति विशेष के लोगों में धर्मांतरण हुआ और किस हिस्से में इसका प्रभाव ज्यादा है।

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