पुरी : कल से पूरे ओडिशा सहित पूरे देश में भक्ति और आस्था का महासंगम देखने को मिलेगा, क्योंकि भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होने जा रही है. जैसे ही घंटा, शंख और ‘जय जगन्नाथ’ के जयकारों के बीच रथ अपने स्थान से आगे बढ़ेंगे, पुरी का वातावरण एक अद्भुत और दिव्य ऊर्जा से भर उठेगा. लाखों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पर्व के साक्षी बनने पुरी पहुंच चुके हैं.
रथ यात्रा 9 दिनों तक चलती है. पहले दिन देवता पुरी के मुख्य मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचते हैं. वहां 7 दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर बहुड़ा यात्रा के जरिए वापसी करते हैं. इस दौरान भक्त हरे कृष्ण हरे राम का संकीर्तन करते हुए, रथों को खींचते हैं. विदेशी श्रद्धालु भी इस दिव्यता से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में शामिल होते हैं.
क्या है रथ यात्रा का महत्व : पुरी की रथ यात्रा को धर्म, संस्कृति और समरसता का प्रतीक माना जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ), उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु भगवान के रथ की रस्सी खींचता है या उसे छूता है, उसे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इस भव्य यात्रा के लिए तीन विशाल रथ तैयार किए गए हैं :
नंदीघोष (जगन्नाथ जी का रथ) 18 पहियों वाला, 45 फीट ऊंचा होता है.
तालध्वज (बलभद्र जी का रथ) 16 पहियों वाला, 44 फीट ऊंचा होता है.
दर्पदलन (सुभद्रा जी का रथ) 14 पहियों वाला, 43 फीट ऊंचा होता है.
रथों का निर्माण हर साल नये लकड़ी से होता है, जिसे विशेष रूप से चयनित पेड़ों से तैयार किया जाता है.
रथों का निर्माण और साज-सज्जा : भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष, बलभद्र का तालध्वज और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ पूरी तरह से बनकर तैयार हैं और उन्हें भव्य रूप से सजाया गया है. पारंपरिक कारीगरों ने इन विशाल रथों को बनाने में महीनों की कड़ी मेहनत की है. इन रथों की भव्यता और पारंपरिक कला शैली इन्हें अद्वितीय बनाती है.
छेर पहरा रस्म : रथ यात्रा से पहले, पुरी के गजपति महाराजा की छेर पहरा रस्म एक महत्वपूर्ण आकर्षण होती है. इस रस्म में महाराजा सोने की झाड़ू से रथों के रास्ते को साफ करते हैं, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है. यह रस्म भगवान के प्रति राजा की अगाध श्रद्धा को दर्शाती है.
गुंडिचा मंदिर यात्रा और बहुड़ा यात्रा : रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपनी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर की यात्रा करते हैं, जहां वे नौ दिनों तक वास करते हैं. इस दौरान गुंडिचा मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा रहता है. नौ दिन बाद, देवता अपनी ‘बहुड़ा यात्रा’ (वापसी यात्रा) पर श्री मंदिर लौटते हैं.