श्रीनगर : जम्मू और कश्मीर में रैनावारी के क्राल्यार इलाके में स्थित बोध मंदिर से उठाकर नदी में फेंके गए शिवलिंग को दस साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बुधवार को जोगेश्वरी मंदिर में स्थापित कर दिया। मौके पर मौजूद कश्मीरी पंडित समुदाय के हर व्यक्ति के लिए यह भावनात्मक और ऐतिहासिक पल था। रैनावारी कश्मीरी पंडित एक्शन कमेटी (आरकेपीएसी) के अंतर्गत आने वाले जोगेश्वरी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष बीएल जलाली ने इसे आस्था की जीत बताया।
बीएल जलाली ने बताया कि 1990 में आतंकवाद के शुरुआती दौर में इस शिवलिंग को मंदिर से निकालकर आतंकवादियों ने नदी में फेंक दिया था। करीब दस साल पहले स्थानीय पुलिस ने शिवलिंग बरामद किया। तब से शिवलिंग पुलिस के पास ही था। अपने इष्टदेव को पाने के लिए हम लोगों ने दस साल तक लड़ाई लड़ी और आखिरकार कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया।
सोमवार को शिवलिंग हमें सौंप दिया गया। समिति ने बुधवार को बोध मंदिर से कुछ ही दूर स्थित जोगेश्वरी मंदिर में शिवलिंग को स्थापित किया। इस दौरान बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित मौजूद रहे। जलाली ने कहा कि ये सिर्फ एक शिवलिंग की वापसी नहीं है, बल्कि पूरे समुदाय की संस्कृति और आस्था की घर वापसी है। एक अन्य कश्मीरी पंडित ने कहा कि यह शिवलिंग कश्मीर की प्राचीन शैव परंपरा की निशानी है।
जोगेश्वरी मंदिर का इतिहास : जोगेश्वरी मंदिर बहुत पुराना है। पहले जब साधु-संत अमरनाथ यात्रा पर जाते तो इसी इलाके में रुकते थे। तभी से इस जगह को जोगी लंकर कहा जाने लगा। जलाली ने कहा कि जोगेश्वरी मंदिर का मूल शिवलिंग अभी भी गायब है। मंदिर की पुरानी तीन मंजिला इमारत को गैरकानूनी तरीके से बेच दिया गया था।
उसे भी वापस लाने की कोशिश करेंगे। फिलहाल वहां पुजारी के रहने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। समिति ने प्रशासन से अपील की है कि वह मंदिरों के संरक्षण और पुनर्निर्माण को प्राथमिकता दे। मंदिर सिर्फ पूजा की जगह नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान होते हैं।