नई दिल्ली : भारतीय वायुसेना (IAF) की हवाई ट्रान्सपोर्ट को एक बड़ी मजबूती मिली है. पहली बार, C-17 ग्लोबमास्टर-III एयरक्राफ्ट ने कारगिल के हाई-एल्टीट्यूड एयर फील्ड पर सफल लैंडिंग की. यह एयरफील्ड नियंत्रण रेखा (LoC) के पास, समुद्र तल से 9,700 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है और चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है.
ट्रायल लैंडिंग के बाद अब रात में लैंडिंग की तैयारी : ग्लोबमास्टर-III बुधवार सुबह दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस से उड़ान भरकर C-17 कारगिल पहुंचा. सूत्रों के मुताबिक, अगले फेज में C-17 की रात में लैंडिंग का टेस्ट किया जाएगा. आमतौर पर यह विमान 70 टन कार्गो ले जाने में काबिल है, लेकिन कारगिल जैसी ऊंचाई पर इसका लोड 35 टन तक सीमित होता है. इससे पहले, जनवरी 2023 में C-130J सुपर हरक्यूलिस ने कारगिल में रात में लैंडिंग की थी. अब C-17 के जुड़ने से वायुसेना की कार्गो क्षमता चार गुना बढ़ जाएगी.
चीन और पाकिस्तान पर नजर, हवाई बेस अपग्रेड : TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने चीन और पाकिस्तान की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अपने एडवांस एयरबेस और लैंडिंग ग्राउंड (ALGs) को अपग्रेड किया है. लद्दाख में थोइस, फुकचे, न्योमा और दौलत बेग ओल्डी (DBO) जैसे हवाई ठिकानों को उन्नत किया गया है. इसी तरह, अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट, मेचुका, वालोंग, तुतींग, आलॉन्ग और ज़ीरो जैसे क्षेत्रों में भी सुधार किया गया है. खासतौर से, न्योमा ALG को 230 करोड़ रुपये की लागत से अपग्रेड किया जा रहा है. इसे 2.7 किमी लंबा पक्का रनवे बनाया जा रहा है ताकि सभी प्रकार के लड़ाकू विमान यहां उतर सकें.
C-17 और C-130J की अहम भूमिका : भारतीय वायुसेना ने अमेरिका से 11 C-17 (4.5 बिलियन डॉलर) और 13 C-130J (2.1 बिलियन डॉलर) खरीदे हैं. ये विमान सीमावर्ती इलाकों में जवानों और सामान की आपूर्ति, आपदा राहत और मानवीय सहायता मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं
2013 में, C-130J ने पहली बार दुनिया के सबसे ऊंचे हवाई ठिकाने DBO (16,614 फीट) पर लैंडिंग की थी, जो चीन की सीमा से कुछ ही किलोमीटर दूर है. इस तरह, भारतीय वायुसेना की नई ताकत चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत की रणनीतिक क्षमता को और मजबूत करती है.