तिरुवनंतपुरम : केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता वी. एस. अच्युतानंदन का निधन हो गया है। उनकी उम्र 101 वर्ष थी। माकपा के राज्य सचिव एम. वी. गोविंदन ने यह जानकारी दी।
गोविंदन ने पत्रकारों को बताया कि अच्युतानंदन का निधन यहां एक निजी अस्पताल में हुआ, जहां वह करीब एक महीने पहले दिल का दौरा पड़ने के बाद से उपचार करा रहे थे। अच्युतानंदन माकपा के संस्थापक सदस्यों में से थे और जीवनभर मजदूरों के अधिकारों, भूमि सुधार और सामाजिक न्याय की वकालत करते रहे। उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दी और सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। वह तीन बार विपक्ष के नेता भी रहे।
माकपा ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन का 21 जुलाई को 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका संघर्षपूर्ण जीवन और जनता के प्रति अटूट समर्पण सदैव प्रेरणादायी रहेगा।’
वहीं, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी उनके निधन पर दुख जताया है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन के निधन पर शोक व्यक्त करता हूं। केरल के कम्युनिस्ट आंदोलन के महान नेता ‘वीएस’ साधारण परिवार से उठकर एक बड़े जनप्रिय नेता और 2006 से 2011 तक मुख्यमंत्री बने, जहां उन्हें सबका सम्मान मिला। उनके लाखों अनुयायी उन्हें याद करेंगे। ओम शांति!
कर्नाटक सरकार के मंत्री के. एल जॉर्ज ने लिखा, मैं वी एस अच्युतानंदन के निधन की खबर सुनकर बेहद दुखी हूं। वह केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के एक महान स्तंभ थे। सामाजिक न्याय, जनकल्याण और सिद्धांतवादी राजनीति के प्रति उनका समर्पण आज भी हमारे देश में एक अमिट विरासत छोड़ गया है।
अच्युतानंदन का सियासी सफर : अच्युतानंदन वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता थे। वह भारत के पहले ऐसे कम्युनिस्ट नेता थे, जो एक साधारण मजदूर परिवार से निकलकर मुख्यमंत्री बने। 1964 में जब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी दो हिस्सों में बंटी, तब अच्युतानंदन माकपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनका जीवन हमेशा संघर्ष से भरा रहा। वह जाति और वर्ग के अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने अपनी पार्टी में भी गलत विचारों के खिलाफ आवाज उठाई।
पार्टी में लोग प्यार से उन्हें ‘वीएस’ कहकर बुलाते थे। एक बार वह पुलिस की मार से बुरी तरह घायल हुए थे, लोगों ने उन्हें मरा हुआ समझा, लेकिन वह बच गए और बड़ी ताकत के साथ वापस आए। उनका पूरा जीवन मजदूरों, किसानों और गरीबों के लिए लड़ाई में बीता। वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भी लड़े थे। वह केरल के एक छोटे से गांव से थे और सिर्फ कक्षा सात तक पढ़े थे।
राजनीति में उनका सफर व्यापार संगठन से शुरू हुआ। 1939 में वह कांग्रेस में शामिल हुए, फिर 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी में चले गए। ब्रिटिश राज में और आजादी के बाद उन्होंने कई साल जेल में बिताए और कई बार पुलिस से छिपकर रहे। 1964 में जब कम्युनिस्ट पार्टी टूट गई, वह माकपा के संस्थापक सदस्य बने। 1980 से 1992 तक वे पार्टी के राज्य सचिव रहे। वह चार बार केरल विधानसभा के सदस्य चुने गए और दो बार विपक्ष के नेता भी रहे।
उन्हें चार बार केरल विधानसभा के लिए चुना गया (1967, 1970, 1991 और 2001 में)। वह दो बार विपक्ष के नेता भी रहे (पहली बार 1992 से 1996 तक और फिर 2001 से 2005 तक)। 1996 के विधानसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र मारारीकुलम में पार्टी के भीतर मतभेदों के कारण चुनाव हार गए, जिससे मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। लेकिन इसके बावजूद, वीएस वामपंथ के एक लोकप्रिय नेता बने रहे। वह अपनी तेज तर्कशक्ति, भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख और सामाजिक न्याय के प्रति अडिग प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।
अच्युतानंदन की यात्रा एक दर्जी की दुकान में सहायक से शुरू होकर लगातार संघर्षों से होकर गुजरी। उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर लोगों के हक के लिए लड़ाई लड़ी और 2006 में केरल के मुख्यमंत्री बने। विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने जमीन हड़पने और रियल एस्टेट लॉबी के खिलाफ मजबूत अभियान चलाया, जिसे समाज के हर तबके से समर्थन मिला।