कानपूर : मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की उपासना देशभर में की जाती है, लेकिन कुछ मंदिर अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण ज्यादा प्रसिद्ध हैं. ऐसा ही एक पावन स्थल है मुक्तेश्वरी देवी मंदिर, जिसे मुकुटेश्वरी शक्तिपीठ भी कहा जाता है. मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां माता सती का मुकुट गिरा था, इसलिए इस शक्तिपीठ की महिमा बहुत अधिक है..नवरात्र के दौरान मातारानी के दरबार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.
कानपुर देहात में पावन स्थली मुक्तेश्वरी देवी मंदिर है. कहते हैं कि इसी पवित्र धाम में माता सती का मुकुट गिरा था. नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. पूरे दिन में मां की प्रतिमा तीन बार रूप बदलती है. माता के तीनों रूप के दर्शन के लिए बड़ी मात्रा में श्रद्धालु उमड़ते हैं और मनोकामना पूरी होने पर माता को चुनरी चढ़ाते हैं.
मातारानी का सबसे अनूठा शक्तिपीठ : आज से लगभग पांच हजार साल पहले, इसी स्थान पर माता सती का मुकुट गिरा था, जिससे इस स्थान को मुकुटेश्वरी के नाम से जाना जाने लगा. बाद में माता रानी के इस धाम को मुक्तेश्वरी कहा जाने लगा.यमुना किनारे माता रानी के इस मंदिर के पवित्र इतिहास और धार्मिक महत्व के कारण, इसे सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है.
जब क्रोधित हुए देवदेवेश्वर महादेव : कहा जाता है कि जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया. इस आयोजन में ब्रह्मांड के सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया लेकिन दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया है. इससे रुष्ट होकर माता सती ने उस यज्ञ में स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया. उनके देहांत से भगवान शिव इतने क्रोधित हुए कि तांडव करते हुए माता के शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया. इस दौरान पूरे ब्रह्मांड में हलचल मच गई. श्री हरि विष्णु ने भोलेनाथ का भार कम करने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे. माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का मुकुट गिरा, और तब से इस स्थान का नाम मुकुटेश्वरी पड़ा.
मुक्तेश्वरी देवी मंदिर का अनोखा इतिहास : मुक्तेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास भी अत्यंत रोचक है.किवदंती के अनुसार, यह स्थान कभी दैत्यराज बलि की राजधानी हुआ करता था. बलि ने यहां निन्यानबे यज्ञ किए थे और एक अश्वमेध यज्ञ भी आयोजित किया था. इस दौरान, देवी माता की शक्ति का प्रतीक इस मंदिर के रूप में स्थापित हुआ था.
मातारानी की 5,000 साल पुरानी लोककथा : लोक कथाओं के अनुसार, मुक्ता देवी एक राजा की सुंदर पुत्री थीं. जब उनका विवाह तय हुआ, तो उनके पिता उनकी सुंदरता से मोहित होकर उनसे विवाह करने का निर्णय लेते हैं. इससे क्रोधित मुक्ता देवी ने उन्हें और उनके बारातियों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. कहा जाता है कि आज भी मंदिर परिसर में मौजूद पत्थर की मूर्तियां उन्हीं बारातियों की हैं, जो 5,000 साल पुरानी मानी जाती हैं.
नवरात्रि में सजता है माता का दरबार : मुक्तेश्वरी देवी की पूजा में विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में भक्तों का तांता लगता है. श्रद्धालु यहां आते हैं, अपनी मनोकामनाओं के लिए माता के सामने माथा टेकते हैं और विशेष रूप से उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि इस पवित्र स्थान पर एक बार श्रद्धालु अगर सच्चे मन से पूजा करते हैं, तो उनके सभी दुखों का नाश होता है और हर मनोकामना पूरी होती है.
तीन बार रूप बदलती हैं मां मुक्तेश्वरी : आज भी यहां मातारानी की मूर्ति का तीन बार रूप बदलता है, और भक्तों की मान्यता है कि यह देवी की विशेष आभा और आशीर्वाद का प्रतीक है. खासकर नवरात्रि में इस मंदिर में विशेष श्रृंगार और पूजा का आयोजन किया जाता है, और दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं.
अपार आस्था का प्रतीक मुक्तेश्वरी धाम : आध्यात्मिक रूप से देखे तो, यह मंदिर सिर्फ एक स्थल नहीं है, बल्कि यह एक आस्था का प्रतीक है, जो भक्तों को अपने दुखों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की ओर मार्गदर्शन करता है. मुक्ति की देवी, मां मुक्तेश्वरी की कृपा हर भक्त के जीवन को आशीर्वादित करती है.
यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह समाज में एकता और प्रेम का प्रतीक भी बन चुका है. नवरात्रि के दौरान यहां एक विशाल मेला भी आयोजित होता है, और लाखों लोग यहाँ आकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए मां की पूजा करते हैं.
इस मंदिर के साथ एक बहुत ही दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि एक मुस्लिम महिला, जुवैदा ने इस मंदिर के लिए तीन बीघा जमीन दान में दी थी. जुवैदा का उद्देश्य था कि भविष्य में इस जमीन को लेकर कोई विवाद न हो. आज भी, जुवैदा मंदिर के पास बैठकर श्रृंगार का सामान बेचती हैं.
मुक्तेश्वरी देवी की महिमा अनंत है. इस मंदिर का महत्व सिर्फ धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. श्रद्धालुओं की आस्था और माता की शक्ति, दोनों का अद्भुत मिलाजुला रूप इस मंदिर में देखने को मिलता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. TheXpoz News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)