लंदन : ब्रिटेन ने गुरुवार को मॉरीशस के साथ एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। जिसके तहत हिंद महासागर में स्थित विवादित और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंप दी। ब्रिटिश सरकार ने कहा है कि यह कदम अमेरिका-यूके द्वारा संचालित एक सैन्य अड्डे के भविष्य को सुरक्षित करता है, जो ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस समझौते के तहत यूनाइटेड किंगडम कम से कम 99 वर्षों के लिए इस सैन्य अड्डे को पुनः पट्टे पर लेगा और इसके बदले मॉरीशस को प्रति वर्ष 136 मिलियन डॉलर का भुगतान करेगा। यह सैन्य अड्डा चागोस द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया पर स्थित है और नौसेना व बमवर्षक अभियानों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर ने आज इस समझौते पर मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह समझौता यूके के राष्ट्रीय हित में है। उन्होंने कहा कि यह सैन्य अड्डा, जो अमेरिकी बलों द्वारा संचालित होता है, ब्रिटेन की आतंकवाद-रोधी कार्रवाई और खुफिया प्रयासों के लिए अहम है और देश की आंतरिक सुरक्षा की बुनियाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्टॉर्मर ने यह भी स्पष्ट किया कि यह दीर्घकालिक पट्टा न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य में भी ब्रिटेन की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने में मददगार रहेगा। स्टॉर्मर ने कहा कि यह समझौता उस अड्डे के भविष्य को सुरक्षित करता है जो हमारे देश में सुरक्षा और संरक्षा की नींव पर है।
दोनों देशों के नेताओं द्वारा गुरुवार को समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने से कुछ घंटे पहले, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने हस्तांतरण पर रोक लगाने के लिए एक अस्थायी आदेश जारी किया था। हालांकि सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने कहा कि रोक हटा दी जानी चाहिए।
ब्रिटेन ने हिंद महासागर के इस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंपने पर सहमति जताई है। यहां सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण नौसैनिक और बमवर्षक अड्डा है। इसके बाद ब्रिटेन कम से कम 99 वर्षों के लिए इस अड्डे को पुनः पट्टे पर ले सकेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन से इस संबंध में परामर्श लिया गया था और उसने अपनी स्वीकृति दे दी, लेकिन लागत को लेकर अंतिम क्षणों में बातचीत के बाद सौदे को अंतिम रूप देने में देरी हुई। गुरुवार सुबह एक डिजिटल समारोह में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टॉर्मर और मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम को सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करने थे।
उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने लेकिन समझौते पर रोक लगाते हुए निषेधाज्ञा जारी कर दी। द्वीप के मूल निवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाली दो महिलाओं के दावे पर यह फैसला आया। इस द्वीप के मूल निवासियों को अमेरिकी बेस बनाने का रास्ता साफ करने के लिए दशकों पहले निकाल दिया गया था।
भारत ने हिन्द महासागर में स्थित डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस की संप्रभुता की वापसी पर ब्रिटेन और मॉरीशस सरकार के बीच संधि पर हस्ताक्षर का स्वागत किया है। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को एक बयान में कहा, हम डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस की संप्रभुता की वापसी पर ब्रिटेन और मॉरीशस गणराज्य के बीच संधि पर हस्ताक्षर का स्वागत करते हैं।
इस द्विपक्षीय संधि के माध्यम से लंबे समय से चले आ रहे चागोस विवाद का औपचारिक समाधान इस क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर उपलब्धि और एक सकारात्मक विकास है। यह अक्टूबर 2024 में दोनों पक्षों के बीच हुई समझ से आगे है, और अंतर्राष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित व्यवस्था की भावना में मॉरीशस के उपनिवेशवाद को समाप्त करने की प्रक्रिया की पराकाष्ठा को चिह्नित करता है।
ब्रिटेन ने 1965 में मॉरीशस से इन द्वीपों को अलग कर दिया था, जो कि एक पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश था। मॉरीशस को इसके तीन साल बाद स्वतंत्रता मिली। इ1960 और 1970 के दशक में ब्रिटेन ने द्वीपों से 2,000 लोगों को बेदखल कर दिया। कई लोग ब्रिटेन चले गए।