नई दिल्ली : 21 सदी की कंप्यूटर क्रांति में मोबाइल इंटरनेट और दो जीबी डाटा रोज के जमाने भी बहुत लोग गरीबी जैसी मजबूरी या सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में खामी के चलते से झाड़फूंक करने वाले ओझा से इलाज कराने के लिए मजबूर हैं. ग्रामीण और सुदूरवर्ती इलाकों में नियोनटल यानी नवजात और छोटे बच्चों की बीमारियों को अंधविश्वास से जोड़कर देखा जाता है. कुछ ऐसे ही एक मामले में ओडिशा के नबरंगपुर जिले में इलाज के नाम पर एक महीने के बच्चे को लोहे की गर्म छड़ से करीब 40 बार दागने का मामला सामने आया है.
नबरंगपुर के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी (सीडीएमओ) डॉ. संतोष कुमार पांडा ने अस्पताल का दौरा किया और बताया कि शिशु के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है. उन्होंने बताया, ‘बच्चे के पेट और सिर पर दागने के करीब 30 से 40 निशान हैं. घटना को अंधविश्वास की वजह से अंजाम दिया गया क्योंकि परिवार के सदस्यों का मानना था कि अगर बच्चे को लोहे की गर्म छड़ से दागा जाएगा तो उसकी बीमारियां ठीक हो जाएंगी.’ इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि दस दिन पहले बच्चे को बुखार आया था और वह बहुत रो रहा था.
पांडा ने बताया कि बच्चे के परिजनों का मानना था कि उस पर किसी बुरी आत्मा का साया है. चिकित्सक से इलाज कराने की बजाय उन्होंने बच्चे को 30-40 बार लोहे की गर्म छड़ से दागा, इस विश्वास के साथ कि इससे वह ठीक हो जाएगा. उन्होंने बताया कि लोहे की गर्म छड़ से दागने के बाद जब वह गंभीर रूप से बीमार हो गया तो उसे उमरकोट अस्पताल में भर्ती कराया गया.
सीडीएमओ ने बताया कि दूरदराज के इलाकों में इस तरह की प्रथाओं का लंबे समय से चलन है. उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने चंदाहांडी खंड पर ध्यान केंद्रित करने और लोगों को जागरूक करने का फैसला किया है जिससे बच्चों को लोहे की गर्म छड़ से दागने के बजाय उन्हें इलाज के लिए अस्पताल लाया जाए.