नई दिल्ली : लोकसभा में बुधवार को वक्फ संशोधन विधेयक पर जबरदस्त बहस देखने को मिली. AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक का जोरदार विरोध करते हुए इसकी प्रति फाड़ दी. उन्होंने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर आप इतिहास पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे.. तब उन्होंने नस्लीय भेदभाव वाले कानून को अस्वीकार करते हुए उसे फाड़ दिया था.
ठीक उसी तरह मैं भी इस कानून को नहीं मानता और इसे फाड़ रहा हूं. यह असंवैधानिक है और सरकार इस देश को मंदिर-मस्जिद के नाम पर बांटना चाहती है. मैं इसकी निंदा करता हूं और अपील करता हूं कि सरकार इसमें मेरे 10 संशोधनों को स्वीकार करे.
ओवैसी के इस विरोध पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पलटवार किया. उन्होंने कहा कि एक सदस्य ने कहा कि अल्पसंख्यक इसे नहीं मानेंगे. आप किसे डराने की कोशिश कर रहे हैं? यह संसद का कानून है और सभी को इसे मानना होगा. शाह के इस बयान के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस शुरू हो गई.
इस बिल पर चर्चा दोपहर से ही शुरू हो गई थी और विपक्ष लगातार इसका विरोध कर रहा था. हालांकि इस बार सदन में नारेबाजी, वॉकआउट या किसी अन्य तरह का विरोध प्रदर्शन देखने को नहीं मिला. विपक्षी दलों ने ठोस तर्कों के साथ इस बिल को असंवैधानिक बताते हुए सरकार पर हमला बोला.
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया और कहा कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. उन्होंने अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 15 (धार्मिक आधार पर भेदभाव पर रोक) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि हमने सोचा था कि सरकार इस सत्र में महत्वपूर्ण विधेयकों को लाएगी.
किसान कई सालों से सड़कों पर हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी मांग रहे हैं.. लेकिन सरकार इस पर कोई बिल नहीं ला रही. देश के करोड़ों युवा बेरोजगार हैं.. उनके लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई जा रही. लेकिन सरकार की प्राथमिकता देखिए वह ऐसे कानून ला रही है जो भारत माता को धर्म के नाम पर बांटने का काम करेंगे.
मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने इस बिल को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि सरकार इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल करना चाहती है. हालांकि भाजपा ने इस आरोप को पूरी तरह नकार दिया और कहा कि यह विधेयक सिर्फ पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाया गया है.