नई दिल्ली : पाकिस्तान में हिंदुओं-सिखों और ईसाइयों का तो पहले ही जीना मुश्किल था. लेकिन वहां रहने वाले अहमदिया मुसलमानों की स्थिति भी खास अच्छी नहीं है. हाल ही में कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के नेताओं की भीड़ ने दो अहमदिया पूजा स्थलों को आग लगा दी. एक प्रमुख अल्पसंख्यक समूह ने रिपोर्ट जारी कर सोमवार को रिपोर्ट जारी कर पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की निंदा की.
अहमदिया मस्जिदों में लगा दी आग : द वॉयस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (VOPM) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पाकिस्तान के 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, चरमपंथियों ने देश की सड़कों को नफरत के मैदान में बदल दिया. पंजाब प्रांत के फैसलाबाद जिले में भीड़ ने दो अहमदिया मस्जिदों को आग के हवाले कर दिया. यह इस बात की एक भयावह याद दिलाता है कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता एक भ्रम बनी हुई है.
पुलिस रिपोर्ट का हवाला देते हुए, मानवाधिकार संगठन ने खुलासा किया कि 300 से अधिक हमलावर, छड़ों और ईंटों से लैस होकर, दीजकोट इलाके में स्वतंत्रता दिवस के जुलूस की आड़ में अहमदिया मुसलमानों पर टूट पड़े. VOPM ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि हमलावरों का मुख्य लक्ष्य वे दो मस्जिदें थीं, जो 1984 में पाकिस्तान की अहमदिया पूजा को अपराध घोषित करने से दशकों पहले बनाई गई थीं. हमलावरों ने मीनारों को तोड़ दिया. वहां पर घृणास्पद भाषण दिए और फिर इमारतों को आग लगा दी. इसके साथ ही पास के अहमदिया घरों पर पत्थर फेंके.
कट्टरपंथी TLP कार्यकर्ताओं ने किया हमला : मानवाधिकार संस्था ने ज़ोर देकर कहा कि इस हिंसक घटना ने अहमदिया मुसलमान महिलाओं और बच्चों समेत कई परिवारों को आतंकित कर दिया, जबकि कई लोग घायल हुए.
VOPM के अनुसार, भीड़ का नेतृत्व टीएलपी का नेता हाफ़िज़ रफ़ाक़त कर रहा था. इसके यह एक बार फिर उजागर हो गया कि कैसे मुख्यधारा के चरमपंथी समूह राजनीतिक और धार्मिक बैनर तले खुलेआम हिंसा भड़काते हैं. संस्था ने कहा कि अपनी हिंसक सड़क शक्ति के लिए कुख्यात टीएलपी को पाकिस्तान की राजनीतिक और न्यायिक व्यवस्था में छूट प्राप्त है, जबकि अल्पसंख्यक इसकी कीमत चुका रहे हैं.
मानवाधिकार संस्था ने जताई चिंता : संस्थान ने एक बयान में कहा, ‘यह कोई स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था बल्कि यह संगठित आतंकवाद था. इस मामले में अब आतंकवाद विरोधी अधिनियम, 1997 और पाकिस्तान दंड संहिता की कई धाराओं के तहत दर्ज किए गए हैं. फिर भी इतिहास गवाह है कि ऐसे मामलों में शायद ही कभी वास्तविक जवाबदेही तय होती है. गिरफ़्तारियां तो होती हैं, लेकिन न्याय शायद ही कभी होता है. चरमपंथी समूह अछूत सत्ता के दलालों की तरह काम करते रहते हैं.’
मानवाधिकार संस्था ने ज़ोर देकर कहा कि पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने हिंसक घटना से एक दिन पहले, गैर-मुसलमानों के ख़िलाफ़ मौलवियों द्वारा बढ़ते नफ़रत भरे भाषणों के बारे में चेतावनी दी थी. इसके बावजूद पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठान ने उस चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया गया और कोई एक्शन लेना गवारा नहीं किया. इसके बाद जब हमला हो गया तो दिखावे के लिए 25 लोग पकड़े गए लेकिन पुलिस अधिकारियों ने यह पुष्टि करने से इनकार कर दिया कि हिरासत में लिए गए लोगों में नामज़द संदिग्ध शामिल हैं या नहीं.
पुलिस ने साध ली चुप्पी : VOPM ने कहा, ‘फ़ैसलाबाद के पुलिस प्रमुख की चुप्पी चरमपंथ का सीधे सामना करने की संस्थागत अनिच्छा को और दर्शाती है. चिंता जताते हुए, वीओपीएम ने ज़ोर देकर कहा कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि पाकिस्तान में अहमदिया और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ दशकों से चल रहे एक व्यवस्थित अभियान का हिस्सा है.
वीओपीएम ने कहा, “भेदभावपूर्ण कानूनों से लेकर भीड़ हिंसा तक, पाकिस्तानी राज्य ने चरमपंथी विचारधाराओं को बेरोकटोक पनपने दिया है. हर बार जब राज्य मौलवी सत्ता के आगे झुकता है, तो वह टीएलपी जैसे समूहों को यह तय करने का हौसला देता है कि कौन ‘इस्लामिक गणराज्य’ का हिस्सा है और कौन नहीं.”
कट्टरपंथियों पर कार्रवाई की मांग : मानवाधिकार संस्था ने मांग की कि अगर पाकिस्तान एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना चाहता है, तो अधिकारियों को टीएलपी जैसे चरमपंथी समूहों को खुश करने के बजाय उन्हें कुचलना होगा. इसके अतिरिक्त, वीओपीएम ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा और भीड़ हिंसा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करने और अल्पसंख्यकों की समान नागरिक के रूप में रक्षा करने का आह्वान किया, न कि “धर्मतंत्रीय सत्ता के खेल में बलि के मोहरे” के रूप में.