नई दिल्ली : जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद कई ऐसे सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं, जिनके बारे में किसी ने पहले सोचा भी नहीं था. कश्मीरी पंडितों को भगाए जाने के बाद वहां जर्जर हो चुके मंदिरों का अब धीरे-धीरे करके जीर्णोद्धार करवाया जा रहा है. अब कश्मीर में विचार नाग मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू कर दिया गया है. करीब 2 हजार साल पुराना यह शिव मंदिर 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद उपेक्षित होने के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था. इस ऐतिहासिक मंदिर में आदि गुरू शंकराचार्य भी पूजा करने के लिए आ चुके हैं.
कहां पर है विचार नाग मंदिर? : श्रीनगर के पुराने शहर नौशेरा में स्थित विचार नाग मंदिर का जीर्णोद्धार एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जिसका उद्देश्य लगभग 2100 साल पुराने इस ऐतिहासिक मंदिर को पुराने स्वरूप में वापस लाना है. अंचार झील के पास स्थित यह मंदिर कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखता है. यह कश्मीर की विविध विरासत को भी दर्शाता है. मंदिर का यह जीर्णोद्धार कार्य 19 जुलाई, 2025 को मुख्य सचिव अटल डुल्लू और श्रीनगर के उपायुक्त अक्षय लाबरू की ओर से आधारशिला रखने के साथ शुरू हुआ.
मज़दूरों के प्रभारी एजाज अहमद डार ने बताया कि जीर्णोद्धार के काम में 10-12 मजदूर लगाए गए हैं. कई अधिकारी यहां आए और उद्घाटन किया गया. मंदिर के लिए नया भवन बनाया जाना है क्योंकि पानी से पुराना भवन क्षतिग्रस्त हो गया था. मंदिर के पुनर्निर्माण में 5-6 महीने लगेंगे. हम वर्तमान में मिट्टी की जांच कर रहे हैं.
मंदिर का जीर्णोद्धार का क्या है प्लान? : डार ने बताया कि जैक की मदद से मंदिर की संरचना को ऊपर उठाया जाएगा, जिससे वास्तविक संरचना और आर्किटेक्चर वैसी ही बनी रहे. जीर्णोद्धार में मंदिर स्थल की मूल स्थलाकृति को पुनर्स्थापित करने के लिए मिट्टी का भराव शामिल है. इसमें मंदिर के लिए एक प्रवेश द्वार का निर्माण भी किया जाएगा. मंदिर के मूल सौंदर्य को संरक्षित रखने के लिए सभी निर्माण कार्य सजावटी लकड़ी और पत्थर जैसी पारंपरिक सामग्रियों से किए जाएंगे.
उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में 5 पवित्र झरने और दो प्राचीन शिव मंदिर शामिल हैं, जिनका ऐतिहासिक महत्व है. यह एक विचार स्थल के रूप में कार्य करता है और जगत गुरु शंकराचार्य जैसी विभूतियों ने भी यहां दर्शन किए थे. सरकार ने इस परियोजना के लिए करीब 5 करोड़ रुपये सेक्शन किए हैं. मंदिर के निर्माण का कार्य रोड्स एंड बिल्डिंग विभाग की ओर से किया जा रहा है. यह परियोजना विरासत संरक्षण योजना के तहत आर्कियोलॉजी विभाग जम्मू-कश्मीर की ओर से की जा रही थी. इस प्रोजेक्ट के एक साल के भीतर जुलाई 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है.
3 दशकों से बंद पड़ा था मंदिर : रोड्स एंड बिल्डिंग विभाग के AEE सरताज अहमद भट्ट ने बताया कि यह सदियों पुराना मंदिर है. इसकी फंडिंग इसकी फंडिंग आर्कियोलॉजी विभाग की ओर से की जा रही है. हम जैक की मदद से मंदिर को उठा रहे हैं और इसकी संरचना में कोई बदलाव नहीं होगा. यह वैसा ही रहेगा, बस हम इसका जीर्णोद्धार कर रहे हैं ताकि इसका वास्तु वही रहे. हम कई और मंदिरों और मस्जिदों का पुननिर्माण कर रहे हैं.
पिछले तीन दशकों में कश्मीर में आतंकवाद के दौरान, खासकर 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के बड़े पैमाने पर पलायन के बाद मंदिर को काफी नुकसान हुआ था. विश्व कश्मीरी समाज, ज़ारा फाउंडेशन और अन्य प्रमुख कश्मीरी पंडित संगठनों ने इस जीर्णोद्धार का स्वागत किया है और मंदिर के पुनर्निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया है. इसकी मूल वास्तुकला को संरक्षित करते हुए प्राचीन गौरव को बरकरार रखा गया है.
विचार नाग मंदिर का इतिहास : विचार नाग मंदिर, जिसे ‘विचार साहब’ के नाम से भी जाना जाता है, का उल्लेख कल्हण की राजतरंगिणी में मिलता है. माना जाता है कि सम्राट कनिष्क (लगभग 78 ई.) के शासनकाल में यह चौथी बोध कौंसिल की एक टोली का स्थल था. ऐतिहासिक रूप से, यह धार्मिक और बौद्धिक चर्चाओं का केंद्र रहा है, जिसमें कश्मीरी ब्राह्मणों की ओर से नववर्ष के लिए हिंदू कैलेंडर पंचांग पर होने वाली बहसें भी शामिल थीं.
“विचार नाग” नाम कश्मीरी और संस्कृत शब्द “विचार” से आया है, जिसका अर्थ है चर्चा या विचार, जो बौद्धिक और आध्यात्मिक विमर्श के केंद्र के रूप में मंदिर की ऐतिहासिक भूमिका को दर्शाता है. कश्मीरी ब्राह्मण इस मंदिर का उपयोग पंचांग (हिंदू कैलेंडर) पर चर्चा करने के लिए करते थे. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है.
विचार मंदिर के झरने की लंबाई कितनी है? : मुख्य मंदिर में एक विशाल झरना है, जिसकी लंबाई 430 फीट और चौड़ाई 35 फीट है. इसके केंद्र में एक 3 फीट ऊंचा पत्थर का शिवलिंग है, जो केवल तभी दिखाई देता है जब झरने में पानी कम हो जाता है. इस झरने का पानी अनोखा है, जो गर्मियों में बर्फ जैसा ठंडा और सर्दियों में गुनगुना हो जाता है और वसंत ऋतु में आज भी विभिन्न प्रकार की मछलियां इस झरने में देखी जाती हैं.
यह मंदिर कश्मीर के पारंपरिक देवरी पत्थरों से बना है, जो तराशे और तैयार किए गए हैं. झरने के पश्चिम और दक्षिण की ओर सीढ़ियां हैं, जो सुबह के सूरज की ओर मुख करके बनाई गई हैं. इस मंदिर में देवी पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप को समर्पित एक मंदिर भी है, जो मंदिर के कश्मीरी शैव धर्म से संबंध को दर्शाता है.
यह मंदिर धार्मिक और सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था, क्योंकि कश्मीर में शैव धर्म की गहरी जड़ें रही हैं. यहाँ शैविज्म के भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा होती थी. इसके अलावा कश्मीरी पंचांग (कैलेंडर) के अंतिम दिन मनाए जाने वाले चैत्र अमावस्या उत्सव पर यहां मेला लगता था. जहां भक्त पवित्र झरने में स्नान करते थे और मंदिर में पूजा करते थे, जिसे “विचार साहब” के नाम से जाना जाता है.
मौसम के अनुसार बदल जाता है पानी : विचार नाग मंदिर कश्मीर की बहुलवादी विरासत का प्रतीक बना हुआ है, जो हिंदू-बौद्ध शिक्षा और शैव भक्ति के केंद्र के रूप में इसके इतिहास को दर्शाता है. इस जीर्णोद्धार प्रयास का उद्देश्य न केवल एक भौतिक संरचना को पुनर्स्थापित करना है, बल्कि कश्मीरी पंडित समुदाय और क्षेत्र के समृद्ध इतिहास के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान की दिशा में एक कदम का भी प्रतीक है.
कश्मीरी पंडित अशोक कुमार के अनुसार, ‘यह बहुत पुराना मंदिर है, सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों साल पुराना. यह वचन नाग नहीं है, यह विचार नाग है, वह स्थान जहाँ लोग बैठकर चर्चा करते हैं, उसे विचार नाग कहते हैं. अगर आप इसके इतिहास की बात करें तो विचार नाग के अंदर भगवान शिव का शिवलिंग है और मंदिर भी हैं. यहाँ एक झरना है जिसमें सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा पानी होता है.’
शंकराचार्य भी मंदिर में कर चुके हैं दर्शन : प्राचीनकाल में प्रिंटिंग नहीं होती थी, इसलिए कश्मीर के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में ज्ञानी ब्राह्मणों का एक समूह बैठता था जो वार्षिक कैलेंडर और त्यौहार लिखते थे. फिर अमावस्या के दिन, जब चंद्रमा का जन्म होता है तो वे चार समूह यहां आते थे. उस दिन त्यौहार होता था और चारों अपने निष्कर्षों को बताते थे और जो संयोग अंतिम रूप देते थे, वे पंचनाग वर्ष हुआ करते थे. तब कैलेंडर की एक पुस्तक बनती थी जो विभिन्न स्थानों पर मैन्युअल रूप से वितरित की जाती थी ताकि लोगों को वर्ष की तिथियों और त्योहारों के बारे में जानकारी हो.
वे बताते हैं, ‘आदि गुरु शंकराचार्य भी लगभग 800 साल पहले यहां आए थे. यह बहुत ही पवित्र स्थान है, जहां हम अमावस्या पर उत्सव मनाते हैं, जो पूरे साल का उत्सव होता था. जहां ज़्यादा से ज़्यादा लोग आते थे और बड़े पैमाने पर उत्सव मनाया जाता था. यह नए साल की शुरुआत होती थी. ऐसे में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाना सरकार का एक स्वागत योग्य कदम है. हम चाहते हैं कि सभी धार्मिक स्थलों की सफ़ाई भी होनी चाहिए.’