नई दिल्ली : अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में एक बड़ा कदम उठाया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया पर लगी कड़ी आर्थिक पाबंदियों में ढील देते हुए एक्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर दिए हैं. ये वही सीरिया है जो कभी अमेरिकी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर था. अब ट्रंप प्रशासन इसे नया मौका देने की बात कह रहा है. ये फैसला ऐसे वक्त में आया है जब ईरान मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
सीरिया के अंतरिम नेता अहमद अल-शरा से मई में सऊदी अरब में मुलाकात के बाद ट्रंप ने ये वादा किया था कि अगर सीरिया शांति की राह पर आगे बढ़ेगा, तो अमेरिका उसके साथ आर्थिक रिश्ते बहाल करेगा. अब वही वादा निभाते हुए ट्रंप ने सीरिया से 50 साल पुरानी पाबंदियां हटानी शुरू कर दी हैं. इसका सीधा मतलब है सीरिया अब अमेरिका का नया मिडिल ईस्ट बेस बन सकता है और ईरान के लिए ये किसी बुरे सपने से कम नहीं.
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के मुताबिक ये फैसला सीरिया को इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम से जोड़ने, निवेश को बढ़ावा देने और पड़ोसी देशों को भी इसमें शामिल करने के इरादे से लिया गया है. यूरोपीय यूनियन भी अमेरिका की राह पर चलते हुए सीरिया से ज्यादातर पाबंदियां हटा चुका है. यानी मिडिल ईस्ट में एक नया राजनीतिक और आर्थिक गठजोड़ उभर रहा है, जिसमें ईरान अलग-थलग पड़ सकता है.
हालांकि सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद और उनके करीबियों पर लगी सीज़र एक्ट के तहत पाबंदियां अब भी बनी रहेंगी. इन लोगों पर मानवाधिकार हनन, ड्रग्स तस्करी और केमिकल हथियारों से जुड़ी गतिविधियों का आरोप है. इस एक्ट को सिर्फ अमेरिकी संसद ही खत्म कर सकती है. इसके अलावा आतंकी संगठनों और ड्रग्स (खासकर कैपटागॉन) बनाने वालों पर भी पाबंदियां बनी रहेंगी.
ट्रंप का ये कदम पूरी तरह से अमेरिका और सीरिया के बीच रिश्ते सामान्य नहीं करता. सीरिया अब भी आतंकवाद का प्रायोजक देश और अल-शरा का गुट ‘विदेशी आतंकी संगठन’ के तौर पर चिह्नित है. अमेरिकी विदेश विभाग इन टैग्स की समीक्षा कर रहा है. यानी अभी दोस्ती का पूरा दरवाजा खुला नहीं है, लेकिन खिड़की जरूर खोल दी गई है.