नई दिल्ली : उत्तराखंड सरकार ने मदरसा बोर्ड अधिनियम खत्म करने का विधेयक मंगलवार को विधानसभा में पेश कर दिया। बुधवार को सदन में इस पर चर्चा हो सकती है और इसे पास किया जा सकता है। इस अधिनियम के स्थान पर उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक, 2025 लाने का प्रस्ताव किया गया है। यदि यह विधेयक कानून बन जाता है तो इसका लाभ सिख-जैन और बौद्ध धर्म के शिक्षण संस्थानों को भी मिलेगा। मदरसा बोर्ड के अंतर्गत केवल मुस्लिम समुदाय के मदरसा संस्थानों को ही राज्य सरकार के विशेष अनुदानों का लाभ मिल पाता था।
पुष्कर सिंह धामी सरकार के इस कदम से राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई है। उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को हरीश रावत के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 2016 में लागू किया था। कांग्रेस मदरसा बोर्ड को समाप्त करने और नए विधेयक को लाने का विरोध कर रही है। लेकिन हिंदूवादी संगठनों सहित दूसरे धर्मों के शैक्षिक संगठनों ने इस विधेयक का स्वागत किया है।
‘कोई भेदभाव नहीं, सबको एक कानून में लाने की कोशिश’ : सामाजिक कार्यकर्ता और कानून विशेषज्ञ मनु गौर ने इस विधेयक को एक मील का पत्थर बताया है। उन्होंने कहा कि नए विधेयक में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया है। उलटे संख्या की दृष्टि से कम सभी धर्मों के शिक्षण संस्थानों को इसके अंदर लाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कानून को लेकर किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। सरकार किसी भी मदरसे को समाप्त नहीं करने जा रही है, लेकिन राज्य सरकार की सुविधाएं और छूट प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक, 2025 के अंतर्गत गठित होने वाले प्राधिकरण के पास उसका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा।
अब कैसे मिलेगा अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा : मनु गौर ने कहा कि नए विधेयक के कानून बन जाने के बाद एक जुलाई, 2026 तक प्रदेश में चल रहे सभी मदरसों को उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से संबद्धता लेना अनिवार्य होगा। इसके बाद शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण में आवेदन करना होगा। उन्होंने कहा कि शर्तें पूरी होने की दशा में ही संस्थानों को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा मिल पाएगा।
मदरसों की अवैध गतिविधियों पर लगेगी रोक- विहिप : विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी डॉ. सुरेंद्र जैन ने अमर उजाला से कहा कि देश के हर वर्ग को एक समान दृष्टि से देखा जाना राष्ट्र के हित में है। जब कांग्रेस सरकार का कोई प्रधानमंत्री यह कहता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है, तो इससे दूसरे वर्गों में नाराजगी और निराशा पैदा होती है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक वर्ग के सभी धर्मों के शिक्षण संस्थानों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए धामी सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए। उनकी मांग है कि देश की दूसरी सरकारें भी इसी तरह हर धर्म के लोगों के साथ एक समान व्यवहार करने वाला कानून लाएं।
बीएसएफ ने भी जताई थी चिंता : डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि देश की प्रमुख सुरक्षा एजेंसी बीएसएफ ने पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में अचानक बढ़ रहे मदरसों की संख्या को लेकर चिंता जाहिर की थी और इसे देश की सुरक्षा से जोड़कर देखा था। जैन ने कहा कि कुछ समय पहले ही प्रयागराज के एक मदरसे से बेहद आपत्तिजनक सामग्रियां और लोगों को भड़काने वाले साहित्य मिले थे। इसे देखते हुए सभी मदरसों को सरकार की निगरानी में रखना बेहद आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि सरकार की सहायता लेने वाले किसी भी संस्थान पर सरकार का नियंत्रण या निगरानी होना आवश्यक है। इसे संकीर्ण दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। सच्चाई यह है कि यदि मुस्लिम समुदाय के बच्चों को भी अन्य बच्चों के समान आधुनिक शिक्षा मिलेगी तो वे भी दूसरे बच्चों की तरह देश की सेवा में प्रवृत्त होंगे। उन्होंने कहा कि देशहित में ऐसा करना आवश्यक है।