पुणे : छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी पर निशाना साधा है। उन्होंने जस्टिस रेड्डी को सलवा जुडूम आंदोलन को खत्म कराने जिम्मेदार बताया। साथ ही कहा कि यह दुख की बात है कि वही जज, जिन्होंने सलवा जुडूम को खत्म किया आज कांग्रेस के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार हैं। उन्होंने कहा कि बस्तर के लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या यह वही जज हैं? उन्होंने नाम याद रखा है। ऐसे व्यक्ति को कोई कैसे स्वीकार कर सकता है?
बता दें कि देश में आने वाले नौ सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने है। इसको लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है। एक तरफ जहां एनडीए गठबंधन दल ने सीपी राधाकृष्णन ने अपना उपराष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन ने उपराष्ट्रपति पद उम्मीदवार के लिए जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी का नाम आगे किया है।
पुणे में एक कार्यक्रम में व्याख्यान के दौरान छत्तीसगढ़ में नक्सल चुनौती पर बोलते हुए विजय शर्मा ने कहा कि 2011 के फैसले के बाद बस्तर में खून की नदियां बहीं। नक्सलियों ने सैकड़ों लोगों को मार डाला, अपंग बना दिया या गला घोंटकर हत्या कर दी। उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि वही जज, जिन्होंने सलवा जुडूम को खत्म किया आज कांग्रेस के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार हैं। शर्मा ने आगे कहा कि साल 2011 में सलवा जुडूम आंदोलन को असंवैधानिक घोषित करने वाले फैसले के बाद बस्तर में नक्सली हिंसा अचानक बहुत बढ़ गई और हजारों लोग उसकी चपेट में आ गए।
विजय शर्मा ने बताया कि सलवा जुडूम एक जनआंदोलन था, जिसे नक्सली हिंसा के खिलाफ ग्रामीणों ने खुद शुरू किया था। सरकार की कोई भूमिका शुरू में नहीं थी। गांव वालों ने खुद ही कैंप बनाए और नक्सलियों से मुकाबला किया। बाद में सरकार ने उन्हें कुछ सहयोग दिया। नक्सली जब इन शिविरों पर हमला करने लगे, तो सरकार ने इन्हीं लोगों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में नियुक्त करना शुरू किया।
इसके साथ ही अपने बयान में आगे शर्मा ने बताया कि जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी ने 2011 में फैसला सुनाया कि सलवा जुडूम असंवैधानिक है और इसे बंद किया जाए। यह फैसला कानूनी दृष्टि से मजबूत नहीं था, बल्कि अकादमिक नजरिए से दिया गया था। बस्तर के लोगों की आवाज सुने बिना फैसला सुना दिया गया।
शर्मा ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह पहले ही एलान कर चुके हैं कि मार्च 2026 तक बस्तर से सशस्त्र नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। सरकार का संकल्प है कि भारत के संविधान को बस्तर के हर कोने में लागू किया जाएगा। नक्सली किसी के अधिकारों के लिए नहीं लड़ते, वे सिर्फ बंदूक की ताकत में विश्वास करते हैं और स्थानीय लोगों में डर फैलाते हैं। सरकार उनका पुनर्वास कर मुख्यधारा में लाने की हरसंभव कोशिश कर रही है।